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जैन आगम : एक परिचय]
२१ _ विचरण करने वाले श्रमणों का सम्मेलन मथुरा में हुआ उसी समय (वीर नि. सं. ८२७ -८४०) दक्षिण-पश्चिम में विचरण करने वाले श्रमणों का सम्मेलन वल्लभी (सौराष्ट्र) में आर्य नागार्जुन की अध्यक्षता में हुआ। वहाँ भी जितना श्रुत श्रमणों को स्मरण था, उसका संकलन किया गया। यह वाचना 'वल्लभी वाचना' या 'नागार्जुनीय वाचना' कहलाती है।
पंचम वाचना- यह वाचना वीर निर्वाण की दसवीं शताब्दी (वी. नि. संवत् ९८० या ९९३ ; ईस्वी सन् ४५४ या ४६६) में देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में वल्लभी नगरी में हुई। स्वयं देवर्द्धिगणी अंग ११ और १ पूर्व से अधिक श्रुत के ज्ञाता थे। स्मृति की दुर्बलता और परावर्तन की न्यूनता से अधिकांश श्रुत विलुप्त हो गया था।
— देवर्द्धिगणी ने यह उचित समझा कि स्मृति की दुर्बलता के कारण आगामी काल के श्रमण भगवद्वाणी को स्मरण नहीं रख पायेंगे, इसलिए जितना ज्ञान इस समय उपलब्ध है, उसे पुस्तकारूढ़ कर दिया जाये। उन्होंने उपलब्ध ज्ञान को संकलित करके लिपिबद्ध करने का ऐतिहासिक तथा साहसपूर्ण निर्णय किया। इस लेखन के समय उन्होंने माथुरी वाचना को मूल में स्थान दिया और जहाँ नागार्जुनीय वाचना में भेद था, उसे पाठान्तर में रखा। इसीलिये आगमों के व्याख्या ग्रन्थों में यत्रतत्र 'नागार्जुनीयास्तु पठन्ति' इस प्रकार का निर्देश प्राप्त होता है।
इसके पश्चात् आगमों की कोई सर्वमान्य वाचना नहीं हुई और पूर्वश्रुत विलुप्त हो गया।
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