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[जैन आगम : एक परिचय . वीर साधकों की कथाएँ है जो घोर उपसर्ग आने पर भी धर्म से विचलित नहीं हुए। इसके प्रथम श्रुतस्कन्ध में १९ अध्ययन .
और दूसरे श्रुतस्कन्ध में १० वर्ग है। दोनों श्रुतस्कन्धों के २९ उद्देशनकाल, २९ समुद्देशनकाल और ५७६००० पद हैं।
महत्व- ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक आदि दृष्टियों से इस आगम का बहुत महत्व है। इसमें भगवान पार्श्व के समय के जन-जीवन, विभिन्न मत-मतान्तर, प्रचलित रीति-रिवाज, नौका सम्बन्धी साधन-सामग्री, राजमार्ग, वन-पथ आदि सभी बातों का सजीव चित्रण हुआ है।
(७) उपासकदशांग- यह सातवाँ अंग आगम है। उपासक शब्द यहाँ श्रावकों के लिए व्यवहृत हुआ है।
विषयवस्तु- यों तो भगवान महावीर के लाखों उपासक थे। लेकिन इस आगम में भगवान के विशिष्ट दस श्रावकों का वर्णन है। ये श्रावक हैं -आनन्द, कामदेव, चूलणीपिया, सुरादेव, चुल्लशतक, कुंडकोलिक, सकडालपुत्र, महाशतक, नन्दिनीपिता, और सालिहीपिता। इस आगम में श्रावकधर्म का सूक्ष्मातिसूक्ष्म और विस्तृत वर्णन हुआ है। __परिमाण- इस आगम में दस अध्ययन, दस उद्देशनकाल और दस समुद्देशनकाल हैं। वर्तमान में इस आगम का परिमाण ८१२ श्लोक हैं।
विशेषता- सम्पूर्ण द्वादशांगी में यही अंग ऐसा है जिसमें श्रावक की जीवनचर्चा का वर्णन है। इसमें श्रावक के १२ व्रत, १५ कर्मादान, ११ प्रतिमाओं का वर्णन है। सबसे बड़ी विशेषता है- सत्य का सम्मान । स्वयं गौतम गणधर सत्यवादी श्रावक आनन्द
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