Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 13
________________ [जैन आगम : एक परिचय (६) ज्ञाताधर्मकथा, (७) उपासकदशा, (८) अन्तकृत्दशा, (९) अनुत्तरौपपातिक, (१०) प्रश्नव्याकरण, (११) विपाक, और (१२) दृष्टिवाद। (२) अनुयोग विभाजन - भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् सुदीर्घ-काल तक यह पूर्व और अंगों का वर्गीकरण चलता रहा। साधक इसी रूप में अध्ययन करते रहे। अब तक सम्पूर्ण श्रुत अपृथक्त्वानुयोग में था। इसमें प्रत्येक सूत्र की व्याख्या चरण-करण, धर्मकथा, गणित और द्रव्यानुयोग-यों, चारों दृष्टियों से साथ-साथ होती थी। किन्तु यह व्याख्या क्लिष्ट तथा दुरूह होती थी; तब आर्यरक्षित ने (वीर निर्वाण सं. ५९०) अध्ययन की सुविधा के लिए सभी आगमों का चार अनुयोगों में विभाजन कर दिया-(१) चरण-करणानुयोग (२) धर्मकथानुयोग, (३) गणितानुयोग और (४) द्रव्यानुयोग। इस पृथक्त्वानुयोग से अध्ययन में सुविधा हो गयी। यह आगम साहित्य का दूसरा वर्गीकरण हुआ। यह वर्गीकरण केवल अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से था, आगमों का मूल रूप ज्यों का त्यों रहा। (३) अंगप्रविष्ट एवं अंगबाह्य - आगम का यह वर्गीकरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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