Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 17
________________ [जैन आगम : एक परिचय अब भी सुरक्षित है। प्रश्न यह है कि आगम साहित्य विच्छिन्न क्यों हो गया? सुरक्षित क्यों न रहा? जिस तरह वैदिक वाङ्मय विपुल मात्रा में सुरक्षित रहा उसी तरह जैन वाङ्मय क्यों न रह सका? इसके उत्तर में निम्न प्रमुख कारणों का उल्लेख किया जा सकता है (१) बार-बार पड़ने वाले सुदीर्घकालीन बारह-बारह वर्ष के अकाल। इस अकालों में अनेक श्रुतधर आचार्य कालकवलित हो गये। (२) श्रमणों की कठोरचर्या-श्रमण साधुओं की चर्या के नियम अत्यन्त कठोर हैं । आहार आदि के निश्चित नियम एवं मर्यादाएँ हैं। उन मर्यादाओं का उल्लंघन करके श्रमण सदोष आहार नहीं लेते। अकाल में जब अन्न का ही अभाव हो जाता है तो निर्दोष भिक्षा मिलनी भी बहुत कठिन हो जाती है। इस कारण भी अनेक श्रुतधर आचार्य मृत्यु की गोद में चले गये। जबकि वैदिक ऋषियों के आहार की कोई कठोर मर्यादा एवं विशेष नियम नहीं है और फिर वे 'आपत्तिकाले मर्यादा नास्ति' का सिद्धान्त मानते हैं। इस कारण भी वैदिक साहित्य सुरक्षित रहा और जैन आगम संपदा विच्छिन्न होती गयी। (३) हिन्दू राजाओं का श्रमण साधुओं के प्रति विद्वेष भावअनेक हिन्दू राजा, विशेष रूप से शुंग और कण्व वंश के नरेश, ऐसे हुए जिनमें धार्मिक सहिष्णुता का अभाव था। वे ब्राह्मणधर्म के कट्टर अनुयायी थे। उनकी असहिष्णुता के कारण भी अनेक श्रमणों को अपने प्राणों से हाथ धोने पड़े। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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