________________ आगम निबंधमाला सिद्ध में गिना जाता है और द्रव्य से स्वलिंग कम से कम मुखवस्त्रिका और रजोहरण ही है। उसके बिना स्वलिंग का कोई परिचय नहीं होता है / कुछ भी उपकरण नहीं होना तो अलिंग होता है अथवा पूर्ण अचेल तो अन्य धर्मी भी होते हैं तो उनमें और जैन साधु में स्वलिंग अन्यलिंग का अंतर कुछ नहीं रहता है / स्वलिंग में उत्कृष्ट एक समय में 108 सिद्ध हो सकते हैं। उनमें तीर्थंकर भी साथ में हो सकते हैं / भगवान ऋषभदेव स्वामी एक समय में 108 के साथ निर्वाण प्राप्त हुए थे जिसमें ऐरवत क्षेत्र के तीर्थंकर भी सामिल करके गिने गये है / __कोई भी साधु केवली. हो जाने पर मुखवस्त्रिका और रजोहरण का त्याग नहीं करता है, नहीं कर सकता है / इन दोनों उपकरणों के बिना चल भी नहीं सकता / यथासमय प्रमार्जन नहीं करने वाले को पापश्रमण कहा गया है और खुल्ले मुँह बोलना तो शकेंद्र के लिये भी सावध भाषा कही गई है। तीर्थंकर संयम जीवन में और केवल ज्ञान पर्याय में अरबों खरबों वर्ष भी प्रवचन प्रश्नोत्तर देते हैं उस समय निरंतर मुँह के पास हाथ रखना भी योग्य या उपयुक्त नहीं लगता है। अत: दोनों उपकरणों के होने की नूतन विचारकों की विचारणा खंडन योग्य नहीं अपितु विचारणीयं, अनुप्रेक्षणीय अवश्य है। सभी तीर्थंकर ग्रहण किये और रखे गये देवदूष्य वस्त्र को एक वर्ष के बाद कभी भी वोसिरा देते हैं। भगवान महावीर स्वामी ने एक वर्ष और एक महिना रखने के बाद सर्दी की ऋतु में विहार करते हुए मार्ग में योग्य स्थान में वस्त्र को वोसिरा दिया था, परठ दिया था। प्रश्न-५ : भगवान महावीर ने वस्त्र को जंगल में परठ दिया था या किसी ब्राह्मण को दे दिया था ? उत्तर- आगम के इस वर्णन से स्पष्ट है कि भगवान ने विहार करते रास्ते में एक वर्ष बाद उस वस्त्र को परठ दिया, वोसिरा दिया / किसी को देने के लिये यहाँ कोई शब्द नहीं है / वस्त्र को छोडने का प्रसंग, कथन होते हुए भी देने की बात यहाँ नहीं की गई है / अतः हम आगम आधार से यह नहीं कह सकते, नहीं मान सकते कि भगवान ने वस्त्र फाडकर ब्राह्मण के मांगने पर उसे दिया / कथा विस्तार में कई बातें कथाकार विस्तृत बना देते हैं, घड देते हैं, उसे शास्त्र जितना 27