Book Title: Agam Nimbandhmala Part 02
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 252
________________ आगम निबंधमाला उद्बोधन देना, उन्हें धर्म मार्ग में उत्साहित करना, यह सब स्वाध्याय तप है [प्रेरणा करके या पत्रिका छपवा कर भक्तों को इक्ट्ठा कर सभा का आयोजन किया जाता है और उनको प्रसन्न करने हेतु सम्मान माल्यार्पण किया जाता है यह स्वाध्याय तप नहीं है / ] ११-ध्यान :- स्वाध्याय आदि से प्राप्त अनुभव ज्ञान के द्वारा आत्मानुलक्षी, वैराग्य वर्धक, अनित्य भावना, अशरण भावना, संसार भावना, एकत्व भावना, अशुचि भावना आदि के द्वारा आत्मध्यान में लीन बन जाना और ज्ञान, वैराग्य एव आत्म भाव में एक मेक बन जाना, चित्त-चितन सारे एक ही आध्यात्म विषय में एकाग्र, स्थिर, स्थिरतम हो जाना, आत्म विकाश के आत्मगुणों में पूर्ण रूपेण क्षीर नीर वत मिल. जाना, इस प्रकार समभाव युक्त आत्म विषय में एकाग्र चित हो जाना, बाह्य संकल्पों से पूर्ण रूपेण हट कर आध्यात्म विषयों में आत्मशात हो जाना, तल्लीन बन जाना ध्यान तप है / स्वाध्याय के चौथे भेद रूप अनुप्रेक्षा और ध्यान की अनुप्रेक्षा दोनों ही अनुप्रेक्षा है किन्तु है दोनों अलग-अलग। एक तत्वानुप्रेक्षा है तो दूसरी आत्मानुप्रेक्षा / विस्तत नय की अपेक्षा ध्यान के चार भेद भी है यथा- 1 आर्त ध्यान 2 रौद्र ध्यान 3 धर्म ध्यान 4 शुक्ल ध्यान। नोट :- ध्यान स्वरूप एवं उसके भेदप्रभेद तथा विस्तत विचारणा अन्य निबंध में देखें। १२-व्युत्सर्ग :- स्वाध्याय और ध्यान में वचन मन का प्रयोग होता है किन्तु व्युत्सर्जन तप तो त्याग प्रधान है / यह अंतिम और पराकाष्ट दर्जे का तप है / इसमें त्याग ही त्याग करना होता है / यहाँ तक कि स्वाध्याय और ध्यान का भी त्याग किया जाता है / क्यों कि स्वाध्याय ध्यान में योग प्रवर्तन है, अनुप्रेक्षा करना भी योग प्रवत्ति है / इस व्युत्सगं तप में तो मन वचन काया के योगों के त्याग का ही लक्ष्य होता है। द्रव्य :- १-सामुहिकता का अर्थात् गण का त्याग कर एकल विहार धारण करना गण व्युत्सर्ग तप है। २-शरीर का त्याग कर कायोत्सर्ग करना अर्थात् तीनों योगों का शक्य व्युत्सर्जन करना, कायोत्सर्ग तप है / ३-उपधि का क्रमिक या पूर्ण रूपेण त्याग करने रूप देश अचेलत्व / 25

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