Book Title: Agam Nimbandhmala Part 02
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 245
________________ आगम निबंधमाला कम वस्तुओं का उपयोग करना उणोदरी तप है / आहार उणोदरी का विस्तृत वर्णन अन्यत्र देखें / 1 पात्र 1 वस्त्र (एक चादर) रखना उपकरण उणोदरी है / अथवा काम में आये हए (गहस्थ के उपयोग लिये) उपकरण ग्रहण करना भी उपकरण उणोदरी है / भाव उणोदरी के कथन में- कलह, कषाय बोलाबोली (वागयुद्ध) आदि के प्रसंग में गम खाना, शांत रहना, मौन रखना, भाव उणोदरी कहा गया है / गुस्सा, घमण्ड, कपट, लोभ, लालच से आत्मा को अलग-सुरक्षित रख लेना भी, भाव उणोदरी तप कहा गया है। ३-भिक्षाचरी :- गोचरी में विविध अभिग्रह करना, 7 पिंडेषणा,७ पाणेषणा के संकल्प से गोचरी जाना। आठ प्रकार की पेटी, अर्द्ध पेटी इत्यादि आकार वाली भ्रमण विधि में से किसी विधि का संकल्प करना। द्रव्य क्षेत्र काल भाव सम्बन्धी अभिग्रह करना / द्रव्य सेखाद्य पदार्थों की संख्या, दत्ति संख्या आदि निर्धारित करना / क्षेत्र-भिक्षा के घरों की संख्या, क्षेत्र, दिशा आदि की सीमा करना / काल- समय की मर्यादा करना उतने समय में ही भिक्षा लाना खाना / भाव से- दाता सम्बन्धी, देय वस्तु से सम्बन्धी, रंग व्यवहार आदि से अभिग्रह करना / शुद्ध ऐषणा समिति से प्राप्त करने का दृढ संकल्प करके गौचरी करना भी भिक्षाचरी तप कहा गया है इस संकल्प में नया अभिग्रह तो नहीं होता है किन्तु ऐषणा नियमों में अपवाद का सेवन नहीं किया जा सकता / मौन पूर्वक गोचरी करना भी भिक्षाचरी तप कहा गया है / भिक्षाचरी तप को अभिग्रह तप या वत्ति-संक्षेप तप भी कहा जा सकता है। ४-रस परित्याग :- विगयों का महाविगयों का त्याग करना, स्वादिष्ट मनोज्ञ पदार्थों का त्याग करना / विविध खाद्य पदार्थों का त्याग करना, खादिम स्वादिम का त्याग करना, अन्य भी मनोज्ञ इच्छित वस्तुओं के खाने का त्याग करना "रस परित्याग तप" है / यों भी संयम साधक रसास्वाद के लिये कोई भी आहार नहीं करता है। किन्तु संयम मर्यादा एवं जीवन निर्वाह के हेतु ही मर्यादित आहार करता है / फिर भी विशिष्ट त्याग की अपेक्षा यह तप होता है / ५-कायक्लेश :- आसन करना, लम्बे समय तक स्थिर आसन रहना, 245

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