Book Title: Agam Nimbandhmala Part 02
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 243
________________ आगम निबंधमाला श्रावक जीवन की साधना का पर्यवसान है / यह आगार सामायिक धर्म-गहस्थ धर्म है / इस धर्म के अनुसरण में प्रयत्नशील आगम आज्ञा को आगे रख कर प्रवत्ति करने वाले श्रावक श्राविका आज्ञा के आराधक होते हैं ।इस प्रकार सिद्धांतों का कथन, आचार धर्म, चार गति बंध, 18 पाप एवं उनका त्याग, श्रावक व्रत, साधु व्रत तथा उसकी आराधना और मुक्ति गमन तक का पूर्ण एवं व्यापक विश्लेषण युक्त यह भगवान का एक प्रवचन-व्याख्यान सदा-सदा मननीय है / निबंध-७२. तप के 12 भेदों का विस्तार तप के प्रकार :- उत्तराध्ययन सूत्र में ३०वाँ अध्ययन तप वर्णन का है / उसमें आभ्यन्तर बाह्य उभय तपों का वर्णन गाथाओं में किया गया है / औपपातिक सूत्र में गद्य पाठ के द्वारा अणगारों के तपगुणों के रूप में विस्तार से वर्णन किया गया है। ठाणांग में तप व भेदोपभेद के नाम कहे गये है और भगवती सूत्र में प्रश्नोत्तर रूप में सभी तपों का स्पष्टीकरण किया गया है। जिनका सारांश इस प्रकार है- तप के मौलिक भेदं दो है- 1 आभ्यंतर 2 बाह्य / दोनों के 6-6 प्रकार है / दोनों प्रकार के तपो में शरीर और आध्यात्म दोनों का पूर्ण सहयोग रहा हुआ है। फिर भी अपेक्षा विशेष से बाह्य तप से बाह्य व्यवहार की प्रमुखता स्वीकार की गई है और आभ्यंतर तप से आध्यात्म भावों की प्रमुखता स्वीकार की गई है / तात्पर्य यह है कि ये सापेक्ष आभ्यंतर और बाह्य तप है किन्तु एकांतिक नहीं है अर्थात् काया के सहयोग बिना वैयावृत्य आदि आभ्यंतर तप नहीं हो सकते और भावों की उच्चता के बिना बाह्य तप में किया गया पराक्रम भी आगे नहीं बढ़ सकता है / 1. अनसन :- नवकारसी, उपवास आदि 6 मासी तप तक की विविध तप साधनाएँ इत्वरिक(अल्पकालिक) तपस्याएँ हैं और आजीवन संथारा ग्रहण करना जीवन पर्यन्त का तप है / आजीवन अनशन के भक्त प्रत्याख्यान और पादपोपगमन ये दो भेद हैं / "भक्त प्रत्याख्यान" में तीन आहार या चार आहार का त्याग 243

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