________________ आगम निबंधमाला शाखाओं पर टांग दिया जाता है, हाथों पैरों को कस कर बाँध दिया जाता.है, पर्वत पर से फेंक दिया जाता है, हाथी के पैर के नीचे कुचल कर कचूमर कर दिया जाता है / (6) कईयों के कान, नाक, दांत, अंडकोश उखाड़ दिए जाते हैं, जीभ खींचकर बाहर फेंक दी जाती है / किसी के अंगोपांग काट कर देश निकाला दे दिया जाता है। कई चोरों को आजीवन कैद में रखकर यातना दी जाती है और अंत में वे वहीं मर जाते हैं / इतनी दुर्दशा यहाँ मनुष्य लोक में चोर भोगते हैं / (7) यदि वे चोर पहले ही ऐसी यातनाओं की कल्पना कर लेते और चौर्यकर्म न करते तो दुःखी नहीं होना पड़ता / वहाँ उन्हें कोई भी शरण नहीं देता है / इतने से भी क्या हआ अभी तो उनको नरकादि दुर्गतियों की वेदना भोगना और अवशेष रहता है। वहाँ से वह बुरी मौत मरकर क्लिष्ट आर्त परिणामों से नरक गति में उत्पन्न होता है / प्रथम अध्ययन में कही गई बीभत्स वेदनाओं को वहाँ नरक में भोगता है। (8) फिर क्रमशः भवोभव नरक तिर्यंच गति में दुःख भोगता ही रहता है / अवशेष कर्म वाला वह कभी मनुष्य भी बनता है तो वहाँ सुख भोग सामग्री एवं धन आदि उसे लाख प्रयत्न करने पर भी नहीं मिलता है / कड़ा श्रम उद्यम करने पर भी सदा असफलता ही हाथ लगती है / न उन्हें सुख नसीब में होता, न शांति / केवल दुःख और दीनता में ही जीवन व्यतीत करता है। (9) इस प्रकार अदत्तादान के पाप से भारी कर्मा बने वे बेचारे विपुल दुःखों की आग में झुलसते रहते हैं / ऐसे अदत्त पाप और उसके विपाक परिणाम को जानकर विवेकी पुरुषों को सुखी होने के लिये परधन धूल बराबर समझ कर नेक नीति से प्राप्त स्वयं की संपत्ति में ही संतुष्ट और सुखी रहना चाहिये / मौत स्वीकार करना पड़ जाय तो भी चौर्य कर्म को स्वीकार नहीं करना चाहिये / निबंध-४५ असत्य त्याग (कथा) बसंतपुर नाम का नगर था / वहाँ अरिमर्दन राजा राज्य करता या। मतिसागर उसका प्रधान था। उस नगर मे धनदत्त सेठ रहता था। 161