Book Title: Agam Nimbandhmala Part 02
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 228
________________ आगम निबंधमाला .. ग्रहण कर उनका आदेश कर देना यह संग्रह नय वचन है। इसी प्रकार यहाँ वनस्पतियाँ है, ऐसा कहने से हरी घास, पौधे, लता, आम्रवृक्ष आदि अनेकों का समावेश युक्त कथन संग्रह नय की अपेक्षा है। उसी प्रकार द्रव्य से६ द्रव्यो का, जीव से चार गति के जीवो का कथन संग्रह नय की अपेक्षा है। इस प्रकार यह नय एक शब्द से अनेको पदार्थों का संग्रह करता है। किन्तु विशेष विशेषतर भेदप्रभेदों की अपेक्षा नहीं रखता है। व्यवहार नय- सामान्य धर्मों को छोड़ते हुए विशेष धर्मों को ग्रहण कर वस्तु का कथन करने वाला एवं भेदप्रभेद करके वस्तु का कथन करने वाला यह व्यवहार नय है। यथा-द्रव्य को 6 भेद से, उसमें भी जीवद्रव्य को चार गति से, फिर जाति से, काया से, फिर देश से, कथन करता है। जैसे संग्रह नय मनुष्य, जानवर आदि को या उनके समूह को ये जीव है ऐसा सामान्य धर्म की प्रमुखता से कथन करेगा तो व्यवहार नय यह मनुष्य भारत वर्ष में, राजस्थान प्रांत के जयपुर नगर का ब्राह्मण जाति का तीसवर्षीय जवान पुरुष है ऐसा कहेगा। इस तरह विशेष धर्म के कथन एवं आशय को व्यवहार नय प्रमुख करता है। (1) नैगमनय सामान्य विशेष दोनों को उपयोगी स्वीकार करता है। (2) संग्रह नय सामान्य को उपयोगी स्वीकार करता है। (3) व्यवहार नय विशेष (व्यवहारिक)अवस्था स्वीकार कर कथन करता है। इन तीनों नयों को द्रव्यार्थिक नय कहते हैं / ये नय तीनों काल को स्वीकार करते हैं / ऋजु सूत्र नय- केवल वर्तमान काल को प्रमुखता देकर स्वीकार करने वाला यह ऋजु सूत्र नय है। यह वर्तमान की ही उपयोगिता स्वीकार करता है। भूत और भावी के धर्मों अवस्थाओं की अपेक्षा नहीं रखता है। कोई व्यक्ति पहले दु:खी था, फिर भविष्य में भी दु:खी होगा, किन्तु यदि वर्तमान में सुखी है और सुख का अनुभव कर रहा है तो पूर्व और भावी दु:ख का उसे अभी क्या वास्ता। अतः उस व्यक्ति को सुखी कहा जायेगा। कोई पहले राजा था, अभी भिखारी बन गया है, फिर कभी राजा बन जायेगा, तो भी उसे अभी तो भिखारीपन का ही अनुभव करना है, अतः भूत और राजापन से उसे अभी सुख कुछ भी नहीं है, न राजापन है, अतः वह भिखारी कहा जायेगा। पहले कोई मुनि बना, अभी गृहस्थ बना हुआ है, फिर मुनि बन जायेगा, तो भी वर्तमान में | 228

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