Book Title: Agam Nimbandhmala Part 02
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 229
________________ आगम निबंधमाला वह गृहस्थ रूप है पूर्व और भावी मुनिपन का उसे कोई आत्मानन्द नहीं है, अतः यह नय वर्तमान अवस्था से वस्तु स्वरूप को देखता, जानता और कथन करता है / शब्द नय- शब्द से ही पदार्थों का ज्ञान होता है इसलिये यह नय पदार्थों के किसी भी प्रकार से बोध कराने वाले शब्दों को स्वीकार करता है। वह शब्द जिस पदार्थ को कहता है, उसे यह नय प्रधानता देकर स्वीकार करता है / यह नय वर्तमान को ही स्वीकार करता है। यथा- "जिन" शब्द से जो वर्तमान में रागद्वेष विजेता है, उसे ग्रहण करता है। किन्तु भविष्य में कोई जिन होगा उस द्रव्य जिन को स्वीकार नहीं करता है। वैसे किसी का नाम जिन है, उस नाम जिन को भी यह स्वीकार नहीं करता है। प्रतिमा या चित्र पर कोई जिन की स्थापना कर दी है, वह स्थापना ज़िन भी यह नय स्वीकार नहीं करता है। इस प्रकार यह नय केवल भाव निक्षेप को स्वीकार करता है नाम, स्थापना एवं द्रव्य को यह नय स्वीकार नहीं करता है। . जो शब्द जिस वस्तु के कथन करने की अर्थ योग्यता या बोधकता रखता है उसके लिये उस शब्द का प्रयोग करना शब्द नय है। शब्द-यौगिक, रूढ़ एवं योगिक-रूढ़(मिश्र)भी होते हैं / वे जिस जिस अर्थ के बोधक होते हैं, उन्हे यह नय उपयोगी स्वीकार करता है। यथा- (1) पाचक यह यौगिक निरूक्त शब्द है इसका अर्थ रसोइया, रसोइ करने वाला होता है। (2) गौ यह रूढ़ शब्द है इसका अर्थ तो है-जाने की क्रिया करने वाला। किन्तु बैल या गाय जाति के लिये यह रूढ़ है, अतः शब्द नय इसे भी स्वीकार करता है। (3) पंकज, यौगिक भी है रूढ़ भी है। इसका अर्थ है कीचड़ में उत्पन्न होने वाला कमल। किन्तु कीचड़ में तो काई, मेंढ़क, शेवाल आदि कई चीजें उत्पन्न होती है, उन्हें नहीं समझ कर केवल कमल को ही समझा जाता है। अतः यह पंकज यौगिक रूढ़ शब्द है, इससे जो कमल का बोध माना जाता है, शब्द नय इसे भी स्वीकार करता है। इस प्रकार विभिन्न तरह से अर्थ के बोधक सभी शब्दों को उपयोगी स्वीकार करने वाला यह शब्द नय है। समभिरूढ़ नय- यह नय भी एक प्रकार का शब्द नय ही है। इसका स्वरूप भी संपूर्ण शब्द नय के समान समझना चाहिये। विशेषता केवल 229

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