Book Title: Agam Nimbandhmala Part 02
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 235
________________ आगम निबंधमाला निर्णय न किये जाने के कारण मतिभ्रम से और भी पाठ विकृत हो गया है। ब्यावर से प्रकाशित छेद सूत्र के त्रीणि सूत्राणि में उसे शुद्ध करने का परिश्रम किया गया है। _ पूर्ण ब्रह्मचर्य के पालन करने वाले का ही स्नान त्याग उचित है / क्यों कि पाँचवीं प्रतिमा में एक-एक मास में केवल 6 दिन ही स्नान का त्याग और दिन में कशील सेवन का त्याग किया जाय तो सम्पूर्ण स्नान का त्याग कब होगा ? तथा केवल 6 दिन ही स्नान त्याग और दिन में ब्रह्मचर्य पालन का कथन प्रतिमाधारी के लिये महत्त्व नहीं रखता है। यदि पाँचवी.प्रतिमा के पूरे पाँच मास ही स्नान का त्याग करने का अर्थ किया जाय तो भी असंगत है। क्यों कि पाँच मास तक रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करे और स्नान का पूर्ण त्याग रखें इन दोनों नियमों का सम्बन्ध अव्यवहारिक होता है। अतः आगम प्रकाशन समिति ब्यावर का स्वीकृत पाठ ही उचित ध्यान में आता है। उसी के अनुसार यहाँ पाँचवी-छट्ठी प्रतिमा का स्वरूप दर्शाया है। . लिपिप्रमादादि के कारणों से ही इन दोनों प्रतिमाओं के नाम समवायांग आदि सूत्र में भिन्न है तथा ग्रन्थों में भी इस सम्बन्ध में अनेक भिन्नताएं मिलती है। (7) सातवीं सचित्तत्याग प्रतिमा का आराधक श्रावक पानी, नमक, फल, मेवे आदि सभी सचित्त पदार्थों के उपभोग का त्याग करता है। किन्तु उन पदार्थों को अचित्त बनाने के त्याग नहीं करता है। (8) आठवीं आरम्भत्याग प्रतिमाधारी श्रावक स्वयं आरंभ करने का संपूर्ण त्याग करता है किन्तु दूसरों को आदेश देकर सावध कार्य कराने का उसके त्याग नहीं होता है। (9) नौवीं प्रेष्यत्याग प्रतिमा में श्रावक आरंभ करने व कराने का त्यागी होता है किन्तु स्वतः ही कोई उसके लिए आहारादि बना दे या आरंभ कर दे तो वह उस पदार्थ का उपयोग कर सकता है। (10) दसवीं उद्दिष्टभक्तत्याग प्रतिमाधारी श्रावक दूसरे के निमित्त बने आहारादि का उपयोग कर सकता है। स्वयं के निमित्त बने हुए आहारादि का उपयोग नहीं कर सकता है। उसका व्यावहारिक 235/

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