________________ आगम निबंधमाला युक्त करना आवश्यक नियम होने पर महीने के छः पौषध का विधान निरर्थक हो जाता है। जबकि तीसरी प्रतिमा से चौथी प्रतिमा की विशेषता भी यही है कि महीने के छः पौषध किये जावें / अतः कल्पित तपस्या का क्रम सूत्र-सम्मत नहीं है। आनंद आदि श्रावकों के अंतिम साधना-काल में तथा प्रतिमा-आराधना के बाद शरीर की कृषता का जो वर्णन है वह व्यक्तिगत जीवन का वर्णन है उसमें भी इस प्रकार के तप का वर्णन नहीं है। अपनी इच्छा से साधक कभी भी कोई विशिष्ट तप भी कर सकता है। आनन्दादि ने भी कोई विशिष्ट तपश्चर्या साधना-काल में की होगी किन्तु ऐसा स्पष्ट वर्णन आगम में नहीं है। यदि उन्होंने कोई भी तप आगे की प्रतिमाओं म किया हो तो भी सब के लिए विधान मानना सूत्रोक्त प्रतिमावर्णन स असंगत होता है, ऐसा समझना चाहिए। निबंध-६९ चैत्य शब्द के अर्थों का ज्ञान __ व्यवहारसूत्र, उद्दे.१, सूत्र-३३ में 'सम्मं भावियाई चेइयाई' शब्द का प्रयोग किया गया है टीकाकार ने उसका अर्थ करते हुए 'जिन वचनों से भावित अन्तःकरण वाला' ऐसा अर्थ किया है। 'चेइय' शब्द के अनेक अर्थ शब्दकोश में बताये गए हैं उसमें ज्ञानवान और भिक्षु आदि अर्थ भी 'चेइय' शब्द के किये हैं / अनेक सूत्रों में तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के लिए 'चेइय' शब्द का प्रयोग किया गया है वहाँ उस शब्द से भगवान को 'ज्ञानवान' कहा है। . उपासकदशा सूत्र अ.१ में श्रमणोपासक की समकित सम्बन्धी प्रतिज्ञा का पाठ है। उसमें अन्यतीर्थिक से ग्रहण किये चैत्य को अर्थात् साधु को वन्दन नमस्कार एवं आलाप-संलाप करने का तथा आहार-पानी देने का निषेध है। वहाँ स्पष्ट रूप से 'चेइय' शब्द का भिक्षु अर्थ में प्रयोग किया गया है। वहाँ चैत्य से आलाप संलाप करने का आगम कथन विशेष मननीय है / क्यों कि मूर्ति से आलाप संलाप नहीं हो सकता। प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'चेइय' शब्द का अर्थ मूर्तिपूजक 237