Book Title: Agam Nimbandhmala Part 02
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 227
________________ आगम निबंधमाला सामान्य धर्म एवं विशेष धर्म दोनों की प्रधानता को स्वीकार किया जाता है / भूत-भविष्य, वर्तमान सभी अवस्था को प्रधानता देकर स्वीकार कर लिया जाता है। वस्तु के विशाल रूप से भी उस वस्तु को स्वीकार किया जाता है एवं वस्तु के अंश से भी उस वस्तु को स्वीकार किया जाता है। इस नय के अपेक्षा स्वरूप को समझने के लिये तीन दृष्टांत दिये जाते हैं, यथा- 1. निवास का 2. प्रस्थक नाम के काष्ठ पात्र का 3. गाँव का / / (1) एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति से पूछा- आप कहाँ रहते हैं ? तो इसके उत्तर में वह कहें कि मैं लोक में रहता हूँ या तिर्छा लोक में रहता हूँ या जंबूद्वीप, भरतक्षेत्र, हिन्दुस्तान, राजस्थान, जयपुर, चौड़ा रास्ता, लाल भवन, दूसरी मंजिल इत्यादि कोई भी उत्तर दे, नैगम नय उन सभी (अनेकों) अपेक्षाओं को सत्य या प्रमुखता से स्वीकार करता है। (2) काष्ठपात्र बनाने हेतु लकड़ी काटने जंगल में जाते समय भी किसी के पूछने पर वह व्यक्ति कहे कि प्रस्थक(काष्ठ पात्र)लाने जा रहा हूँ, वृक्ष काटते समय, वापिस आते समय, छीलते समय, सुधारते समय एवं पात्र बनाते समय, इस प्रकार. सभी अवस्थाओं में उसका प्रस्थक बनाने का कहना नैगम नय सत्य स्वीकार करता है / (3) जयपुर जाने वाला व्यक्ति जयपुर की सीमा में प्रवेश करने पर कहे जयपुर आ गया, नगर के बगीचे आदि आने पर कहे जयपुर आ गया, उपनगर में पहुँचने पर कहे जयपुर आ गया, शहर में पहुँचने पर, चौड़ा रास्ता में पहुँचने पर एवं लाल भवन में बैठने पर साथी से कहे हम जयपुर में बैठे है, इन सभी अवस्थाओं के वाक्य प्रयोगों को नैगम नय बिना किसी संकोच के सत्य स्वीकार कर लेता है। - यह नैगम नय की अपेक्षा है। इस प्रकार द्रव्य पर्याय सामान्य विशेष और तीनों काल को सत्य स्वीकार करने वाला नैगम नय है। संग्रह नय- नैगम नय सामान्य और विशेष दोनों की उपयोगिता को स्वीकार करता है। संग्रह नय केवल सामान्य को ही स्वीकार करता है। विशेष को गौण करता है। सामान्य धर्म से अनेक वस्तुओं को एक में ही स्वीकार करने वाला यह संग्रह नय है / यथा- "भोजन लावो" इस कथन से रोटी, साग, मिठाई, दहीं, नमकीन आदि सभी पदार्थ को 227]

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