Book Title: Agam Nimbandhmala Part 02
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 225
________________ आगम निबंधमाला संग्रह नय- इस नय में वस्तु के सामान्य धर्म को स्वीकार किया जाता है। अलग अलग भेदों से वस्तु को भिन्न भिन्न स्वीकार नहीं करके सामान्य धर्म से, जाति वाचक रूप से वस्तु को संग्रह करके, उसे एक वस्तु रूप स्वीकार करके कथन किया जाता है। उनकी विभिन्नताओं एवं विशेषताओं से अलग अलग स्वीकार नहीं करते हुए यह नय कथन करता है। अर्थात् इस नय के कथन में सामान्य धर्म के विवक्षा की प्रमुखता रहती है, विशेष धर्म गौण होता जाता है। यह नय भेद प्रभेदों को गौण करता रहता है और सामान्य सामान्य को ग्रहण करता है। ऐसा करने में यह क्रमशः विशेष को भी ग्रहण तो कर लेता है, किन्तु उस विशेष के साथ जो भेद प्रभेद रूप अन्य विशेष धर्म है, उन्हें गौण करके अपने अपेक्षित विशेष धर्म को सामान्य धर्म रूप में स्वीकार कर उसी में अनेक वस्तुओं को संग्रहित कर लेता है / यथा- घड़ा द्रव्य का कथन करके सभी घड़ों को इसी में स्वीकार कर लेता, फिर भेद-प्रभेदऔर अलग अलग वस्तु को स्वीकार नहीं करता है। चाहे छोटा बड़ा घड़ा हो या उनमें रंगभेद हो अथवा गुणभेद हो और चाहे मूल्य भेद हो और जब बर्तन द्रव्य से वस्तु का बोध करना होगा तो सभी तरह के बर्तनों को एक में समाबिष्ट करके ही कहेगा अलग अलग जाति या अलग-अलग पदार्थों की भिन्नता की अपेक्षा नहीं रखेगा। इस नय वाला विशेष का ग्राहक न होते हए भी तीन काल की अवस्था को एवं चारों निक्षेपों को स्वीकार करता है। व्यवहार नय- व्यवहार में उपयुक्त जो भी वस्तु का विशेष विशेषतर गुणधर्म है, उसे स्वीकार करने वाला यह व्यवहार नय है। यह वस्तु के सामान्य सामान्यतर धर्म की अपेक्षा नहीं रखता है। अपने लक्षित व्यवहारोपयुक्त विशेष धर्म को स्वीकार करने की अपेक्षा रखता है। यह तीन ही काल की बात को एवं चारों निक्षेपों को स्वीकार करता है। संग्रह नय वाला जीवों को जीव शब्द से कहेगा तो यह नय उन्हें नारकी, देवता आदि विशेष भेदों से कहेगा। ऋजुसूत्र नय- यह नय भूत भविष्य को स्वीकार न करके केवल वर्तमान गुण धर्म को स्वीकार करता है। अर्थात वर्तमान में जो पदार्थ का स्वरूप, अवस्था या गुण है, उसे यह नय मानेगा और कहेगा, शेष अवस्था की | 225

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