Book Title: Agam Nimbandhmala Part 02
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 211
________________ आगम निबंधमाला से अलग करने पर वह परिवर्तन हुआ है और अध्ययन संख्या की पूर्ति की गई है। आगमों में इन परिवर्तनों के संबंध में कोई संकेत नहीं होने से किसी भी परिवर्तन के लिए आगम आधार से तटस्थ चिंतन किया है किन्तु निर्णित निश्चित कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। विद्वान एवं मनीषी पाठकों को जिस पर अनाग्रह समीक्षा का पूर्ण अधिकार रहता है। निबंध-६१ भगवान महावीर का शरीर सौष्ठव उववाई सूत्र में ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए भगवान के चंपानगरी में पधारने का वर्णन है। उसी प्रसंग से भगवान के णमोत्थुणं वर्णित गुणों का तथा अन्य भी अनेक गुणों का एवं शरीर शौष्ठव का वर्णन मस्तक के बालों से प्रारंभ करके पाँव के नखों तक क्रमशः समस्त अंगोपांमो का स्पष्ट वर्णन किया गया है। वह इस प्रकार है श्रमण भगवान महावीर स्वामी धर्म की आदि करने वाले, स्वयं संबुद्ध तीर्थंकर थे, पुरुषोत्तम आदि णमोत्थुणं पठित गुणों से युक्त थे / अरहा-पूज्यनीय, रागादि विजेता, केवलज्ञान युक्त, सात हाथ की ऊँचाई से युक्त, समचौरस संस्थान एवं वज्र-ऋषभनाराच संहनन से युक्त, शरीर के अंतर्वर्ती पवन के उचित वेग से युक्त, निर्दोष गुदाशय युक्त, कबूतर के समान पाचन शक्ति वाले थे। पेट और पीठ के नीचे के दोनो पार्श्व तथा जंघाएँ सुंदर सुगठित थी। उनका मुख कमल सुरभिमय निश्वास से युक्त था। उत्तम त्वचा से युक्त, निरोग प्रशस्त श्वेत मांस युक्त, जल्ल, मल एवं दाग आदि से वर्जित शरीर था। अतएव निरुपलेप, स्वच्छ, दीप्ति से उद्योतित प्रत्येक अंगोपांग थे। शरीर का क्रमिक वर्णन :-उत्तम लक्षणमय उन्नत मस्तक था। मुलायम काले चमकीले धुंघराले घने मस्तक पर केश थे। छत्राकार मस्तक का शिखर, फोड़े फुसी घाव के चिन्हों से रहित, अर्द्ध चन्द्र सम ललाट, पूर्ण चन्द्र सम मुख, सुहावने कान, पुष्ट कपोल, कुछ खींचे हुए धनुष के समान सुंदर टेढ़ी भौंहे, पुंडरीक कमल के समान सफेद नयन, 211

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