Book Title: Agam Nimbandhmala Part 02
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 222
________________ आगम निबंधमाला आदि से अविच्छेद्य होता है, अग्नि उसे जला नहीं सकती, हवा उसे उड़ा नहीं सकती है। ऐसे अनंत व्यवहारिक परमाणु से माप की गणना इस प्रकार होती है अनंत व्यवहार परमाणु = 1 उत्श्लक्षण-श्लक्षणिका होती है / 8 उत्श्लक्षणश्लक्षणिका = 1 श्लक्षणश्लक्षणिका 8 श्लक्षणश्लक्षणिका = 1 ऊर्ध्व रेणु 8 ऊर्ध्व रेणु = 1 त्रस रेणु 8 त्रस रेणु = 1 रथ रेणु 8 रथ रेणु = 1 बाल (देवकुरू मनुष्य का) 8 बाल (देवकुरु) = 1 बाल (हरिवर्ष मनुष्य का) 8 बाल (हरिवर्ष) = 1 बाल (हेमवत मनुष्य का) 8 बाल (हेमवत) = 1 बाल(महाविदेह क्षेत्र के मनुष्य का) 8 बाल (महाविदेह) = 1 बाल (भरत क्षेत्र के मनुष्य का) 8 बाल = 1 लीख , 8 लीख 8 लूँ ___ = 1 जौ मध्य 8 जौ मध्य = 1 उत्सेधांगुल ___उत्सेधांगुल के 12 अंगुल-१ बेंत, २'बेंत-हाथ, 2 हाथ-१ कुक्षी, 2 कुक्षी-१धनुष / ___ परंपरा से पाँचवे आरे के आधा बीतने पर जो प्रमाणोपेत मनुष्य होंगे उनके अंगुल माप को उत्सेधांगुल कहा जाता है / आत्मांगुल प्रत्येक जमाने में अलग अलग माप वाला होता है / प्रमाणांगुल, भरत चक्रवर्ती के अंगुल प्रमाण होता है / निबंध-६६ चार निक्षेपों का रहस्य एवं व्यवहार चार निक्षेपों का वर्णन अनुयोगद्वार सूत्र में है उनका परिशीलन इस प्रकार है- निक्षेपद्वार में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार द्वारों से वस्तु का कथन किया जाता है। फिर भी नाम स्थापना केवल / 222

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