Book Title: Agam Nimbandhmala Part 02
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 215
________________ आगम निबंधमाला पल्य' में डाल देना। इस विधि वे अनवस्थित पल्य से शलाका पल्य भरना, शलाका पल्य से प्रतिशलाका पल्य भरना, फिर उसे खाली करके एक दाना 'महाशलाका पल्य' में डालना। यो करते-करते एक समय 'महाशलाका पल्य' भी भर जाएगा। फिर क्रमशः यों करते करते प्रतिशलाका और शलाका पल्य भी अर्थात् तीनो अवस्थित पल्य पूर्ण भर जाय वहाँ उस द्वीप समुद्र जितना अनवस्थित पल्य को बना कर सरसों के दाने से भर लेना / इस तरह अब चारों पल्य भरे है / चारों पल्य में भरे हुए दानों को और अभी तक द्वीप समुद्रों में डाले गये सारे दानों को गिनने से जो संख्या बनती है उसमें से एक कम करने पर जो संख्या आती है उसे ही उत्कृष्ट संख्याता समझना चाहिए / . उत्कृष्ट संख्याता का परिमाण संपूर्ण हुआ। प्रचलित भाषा से यह 'डाला-पाला का अधिकार' पूर्ण हुआ / (उत्कृष्ट संख्याता को समझने के लिये द्वीप समुद्रों में सरसों के दाने डालने रूप डालापाला का वर्णन किया गया है। द्वीपसमुद्र तो असंख्य है और असंख्य में भी मध्यम असंख्याता ढाई उद्धार सागरोपम के समय जितने है अर्थात् इस उत्कृष्ट संख्याता से द्वीपसमुद्रों की संख्या का कोई संबंध नहीं है क्यों कि वे तो उत्कृष्ट संख्याता से असंख्यगुणे हैं / ) असंख्याता का प्रमाण- (1) जघन्य परित्ता असंख्याता-उत्कृष्ट संख्याता से एक अधिक। (2) मध्यम परित्ता असंख्याता जघन्य परित्ता असंख्याता एवं उत्कृष्ट परित्ता असंख्याता के बीच की सभी संख्या। (3) उत्कृष्ट परित्ता असंख्याता जघन्य परित्ता असंख्यात की संख्या को उसी संख्या से और उतने ही बार गुणा करने पर जो संख्या आवे उसमें एक कम करने पर उत्कृष्ट परित्ता असंख्यात होता है / यथापाँच को पाँच से पाँच बार गुणा करके एक घटाने से 3124 संख्या आती है / (5 x 5 x 5 x 5 x 5=3125-1=3124) / (4) जघन्य युक्ता असंख्याता उत्कृष्ट परित्ता असंख्याता में एक जोड़ने पर। (5) मध्यम युक्ता असंख्याता-जघन्य और उत्कृष्ट युक्ता असंख्याता के बीच की सभी संख्या। 215

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