________________ __ आगम निबंधमाला इस कारण सात कर्मों के अबाधाकाल में प्रदेशोदय नहीं होता है किंतु आयुष्य कर्म के अबाधाकाल में प्रदेशोदय होता है / अत: प्रदेशोदय दो आयुष्य का एक साथ हो सकता है विपाकोदय एक आयुष्य का ही होता है / जीव अपना जितना आयुष्य शेष रहने पर अगले भव का आयुष्य बांधता है उतने समय का ही आयुकर्म का अबाधाकाल होता है / यह आयुष्य कर्म का अबाधाकाल उत्कृष्ट 1/3 उम्र जितना हो सकता है / निबंध-५० तीर्थंकरों के चौतीस अतिशय सामान्य मानवों की अपेक्षा किसी के गुणों की और संपदा की अपनी अलग ही विशिष्टता हो उसे अतिशय कहा जाता है। तीर्थंकर समस्त मानवों में अलौकिक अद्वितीय पुरुष होते हैं / जिनके पुण्य प्रभाव से आकर्षित होकर देवों के 64 इन्द्र उनका जन्म महोत्सव मनाने के लिये बिना बुलाये आते हैं और प्रसूति कर्म एवं सेवा-सन्मान के लिये 56 दिशाकुमारी देवियाँ आती है। ऐसे महापुरुषों के विशिष्ट गुण-प्रभाव रूप अतिशय हों तो यह स्वाभाविक ही है, उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होती है। समवायांग सूत्र में तीर्थंकरों के 34 अतिशय सामान्य एवं 35 वचनातिशय विशेष कहे गये हैं वे इस प्रकार हैचोतीस अतिशय :(1) केश, मूंछ, रोम, नख का मर्यादित ही बढना फिर नहीं बढना / (2) रोम रहित शरीर एवं निरुपलेप निर्मल देह / (3) रक्त, मांस का सफेद होना / (4) श्वासोच्छवास सुगंधी / ये चार जन्म से होते हैं / (5) आहार-निहार अदृश्य, प्रच्छन्न / (6) चक्र (7) छत्र (8) चमर (9) सिंहासन (10) इन्द्रध्वज (11) अशोक वृक्ष (12) भामंडल (13) विहार में समभूमि / (14) कांटों का अधोमुख होना। (15) ऋतु प्रकृति का शरीर के अनुकूल होना / (16) देवों द्वारा एक योजन भूमि प्रमार्जन / (17) जलसिंचन / (18) पुष्पोपचार। (19) अमनोज्ञ शब्दादि का अपहार। (20) मनोज्ञ का प्रादुर्भाव / (21) योजन गामी स्वर / (22) एक भाषा | 179