Book Title: Agam Nimbandhmala Part 02
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 202
________________ आगम निबंधमाला मूसलधार वृष्टि करेगा जिससे कि भूमि में वनस्पति के लिये तिक्त कटुक मधुर आदि रस उत्पन्न करने की शक्ति का संचार होगा। इस प्रकार पाँच सप्ताह की निरंतर वृष्टि के बाद आकाश बादलों से साफ हो जायेगा। तब भरतक्षेत्र में वृक्ष लता गुच्छ तृण औषधि हरियाली आदि उगने लगेंगे एवं क्रमशः वनस्पति विकास हो जाने पर यह भूमि मनुष्यों के सुखपूर्वक विचरण करने योग्य हो जायेगी। अर्थात् कुछ ही महीनों एवं वर्षों में भरत क्षेत्र का भूमि भाग़ वृक्ष लता, फल, फूल आदि से युक्त हो जायेगा। .. वर्षा के बाद बिलवासी मानव प्रसन्न होंगे और धीरे-धीरे बाहर विचरने लगेंगे। कालांतर से जब पृथ्वी, वृक्ष, लता, फल, फूल आदि से परिपूर्ण युक्त हो जायेगी तब मानव देखेंगे कि अब हमारे लिये क्षेत्र सुखपूर्वक रहने विचरने योग्य हो गया है, इस क्षेत्र में जीवन निर्वाह करने योग्य अनेक वृक्ष, लता, पौधे, बेलें और उनके फल-फूल आदि विपुल मात्रा में उपलब्ध होने लंग गये है। तब उनमें से कई सभ्य संस्कार के मानव कभी आपस में इकट्ठे होकर मंत्रणा करेंगे कि "अब विविध प्रकार के खाद्यपदार्थ उपलब्ध होने लगे हैं, अब हम में से कोई मानव मांसाहार नहीं करेगा और जो कोई इस नियम को भंग करेगा उसे हमारे समाज से निष्कासित माना जायेगा और कोई व्यक्ति उस मांसाहारी की संगति नहीं करेगा, उसके निकट भी नहीं जायेगा, सभी उससे घृणा नफरत करेंगे, उसकी छाया के स्पर्श का भी वर्जन करेंगे।" इस प्रकार की एक व्यवस्था वै मानव कायम कर जीवन यापन करते है। शेष वर्णन अवसर्पिणी के पाँचवें आरे के समान है। धर्म प्रवर्तन इस आरे म नहीं होता है। फिर भी मानव चारों गति में जाने वाले होते हैं। जब कि इसके पूर्व के 42 हजार वर्षों में मानव प्रायः नरक तिर्यंच में ही जाते है। इस दूसरे आरे में धर्म प्रवर्तन नहीं होते हए भी मनुष्यों में नैतिक गुणों का क्रमिक विकास होता है, अवगुणों का हास होता है। इस प्रकार यह 21 हजार वर्ष के काल का दूसरा आरा व्यतीत होता है। तीसरा आरा :-अवसर्पिणी काल के चौथे आरे के समान यह तीसरा आरा होता है। इसके तीन वर्ष साढ़े आठ महिने बीतने पर प्रथम / 2020

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