________________ आगम निबंधमाला प्रबलता नहीं है तो अनेकों गुण एवं प्रयत्न भी निस्तेज एवं निरर्थक स हो जाते हैं / एक कवि ने ठीक ही कहा है जब लग जिसके पुण्य का, पहुँचे नहीं करार / तब लग उसको माफ है, अवगुण करे हजार // . पुण्य क्षीण जब होत है, उदय होत है पाप / दाजे वन की लाकड़ी, प्रजले आपो आप / मानव भव को प्राप्त कर आध्यात्म धर्म का संयोग मिल जाय तब तो सोने में सुगंध है किन्तु वहाँ तक पहुँचने में कुछ भी अंतराय हो तो जीवन में शुभ कर्म एवं पुण्य कर्म से वंचित तो नहीं रहना चाहिए। इसी आशय से चित्तमुनि ने संभूति राजा से धर्माचरण की आशा छूट जाने पर उसे शुभ कर्म, आर्य कर्मों की प्रेरणा इन शब्दों में की थी - __ जइ तसि भोगे चइडं असत्तो, अज्जाई कम्माइं करेहि राय / सार- मुक्ति प्राप्ति की सर्वोत्कृष्ट साधना के अवसर के पूर्व पुण्य एवं शुभ कर्म भी उपादेय है एवं आत्मा को अपेक्षाकृत सुख-शांति देने वाल होते हैं किन्तु आशक्ति का विष वहाँ भी हेय ही समझना चाहिए / निबंध-४८ कर्म और पुनर्जन्म की विचारणा पुनर्जन्म का अर्थ है : वर्तमान जीवन के पश्चात् का परलोक जीवन / परलोक जीवन किस जीव का कैसा होता है इसका मुख्य आधार उसका पूर्वकृत कर्म है / जीव अपने ही प्रमाद से भिन्न-भिन्न जन्मान्तर करते हैं / पुनर्जन्म कर्मसंगी जीवों के होता है / अतीत कर्मों का फल हमारा वर्तमान जीवन है और वर्तमान कर्मों का फल हमारा भावी जीवन है / कर्म और पुनर्जन्म का अविच्छेद्य सम्बन्ध है / __ आयुष्य-कर्म के पुदगल-परमाणु जीव में देव, नारक आदि अवस्थाओं में जाने की शक्ति उत्पन्न करते हैं / इसी से जीव नए जन्म स्थान में(अमुक आयु में) जाकर उत्पन्न होता है। . विभिन्न मत-सम्मत :- १-भगवान महावीर ने कहा- क्रोध, मान, माया, और लोभ- ये पुनर्जन्म के मूल को पोषण करने वाले हैं / | 174