________________ आगम निबंधमाला निबंध-२१ शैलक अध्ययन से प्राप्त शिक्षा एवं तत्त्व (1) "थावच्चा स्त्री" का कृष्ण वासुदेव के दरबार में जाना और कृष्ण का उसके घर आना एक महत्वशील घटना है। . . (2) संयम की वार्ता सुनकर उत्साहित होना उसके घर जाकर वैराग्य की परीक्षा करना एवं सारे शहर में प्रेरणा करके एक हजार पुरुषों का दीक्षा महोत्सव करना इत्यादि आचरण तीन खंड़ के स्वामी श्रीकृष्ण वासुदेव की अनन्य धर्मश्रद्धा एवं विवेक को प्रकट करते हैं / यह विवेक सभी के लिये आदर्शभूत है अर्थात् दीक्षा लेने वाले के प्रति क्या भाव एवं व्यवहार रखना चाहिए, यह इस घटना से सीखना चाहिए / वर्तमान में परंपरा की शान व्यक्ति को पंगु बना देती है। सही समझने के बाद भी आज के महाज्ञानी परंपरा के आगे लाचार बन जाते हैं / उन्हे इन आगम उदाहरणों से कुछ सुधार करना चाहिये। (3) सांख्य मतानुयायी सुदर्शन ने जैन मुनि से चर्चा कर श्रावक धर्म स्वीकारा और उसके गुरु शुक संन्यासी ने चर्चा करके संयम अंगीकार किया / ऋजु और प्राज्ञ जीवों के इन उदाहरणों से यह ज्ञात होता है कि मान कषाय से अभिभूत होते हुए भी वे आत्माएँ दुराग्रही नहीं होती है / सत्य समझ में आते ही अपना सर्वस्व परिवर्तन कर देते हैं / हमें भी स्वाभिमान के साथ सरल एवं नम्र बनकर दुराग्रहों से दूर रहना चाहिए अर्थात् सत्य समझ में आ जाने के बाद उसे स्वीकार करने में हिचकिचाट नहीं करना चाहिए / चाहे वह कोई परंपरा हो या सिद्धांत / (4) समय पर शिष्य भी गुरु का कर्तव्य कर देता है / पंथक शिष्य की विनय भक्ति, सेवा, सत्यनिष्ठा ने शैलक राजर्षि का अधःपतन रोक दिया / (5) संयम से गिरते हुए साधक का तिरस्कार न करते हुए उसकी योग्य संभाल करने से उसका उत्थान संभव हो सकता है / अतः गुरु हो या शिष्य, विवेक युक्त निर्णय सर्वत्र सभी को आवश्यक है / तिरस्कार वृत्ति हेय एवं अनाचरणीय है। 72