________________ आगम निबंधमाला है ऐसा संशय भी चेतन तत्त्व को होता है। यह मेरा शरीर है। इस कथन में जो,मेरा शब्द है वह सिद्ध करता है कि मैं कोई शरीर से अलग वस्तु है और वही आत्म तत्त्व है, आत्मा है, जीव है, चैतन्य है। शरीर के नष्ट होने के बाद भी रहता है, परलोक में जाता है, गमनागमन एवं जन्म मरण करता रहता है। अतः संशय करने वाला, दुःख सुख का अनुभव करने वाला, आत्मा का निषेध करने वाला और मैं, मेरा शरीर यह सब अनुभव करने वाला आत्मा ही है और वह शरीर से भिन्न तत्त्व है / आँख देखने का काम करती है, कान सुनता है पर उसका अनुभव करके भविष्य में याद कौन रखता है वह याद रखने वाला तत्त्व इन्द्रियों और शरीर से भिन्न है और वह आत्म तत्त्व है उसे किसी भी नाम से कहो परंतु है वह शरीर से भिन्न दूसरा तत्त्व / इस प्रकार प्रथम उत्तर में ही राजा प्रभावित हुआ क्यो कि मुनि का उत्तर युक्तिपूर्ण था। किंतु राजा के दिमाग में भी अनेक तर्क घर कर रखे थे। अतः वह जमकर चर्चा करने लगा। राजा- भंते ! मेरा दादा मुझ पर अत्यंत स्नेह रखता था, मैं उसे बहुत प्रिय था। वह मेरे समान ही अधर्मिष्ठ था एवं आत्मा को शरीर से अलग नहीं मानता था। इसलिए वह निःसंकोच पापकर्म करता हुआ जीवन यापन करता था। आपकी मान्यतानुसार वह नरक में गया होगा। वहाँ उसे भयंकर दारूण दुःख ही दुःख मिलता होगा। तो मेरे उपर अपार स्नेह के कारण मुझे सावधान करने आना चाहिये था कि हे प्रिय पौत्र ! मैं पापकार्यों के फल स्वरूप नरक में गया हूँ, महान दु:खों में पड़ गया हूँ। अतः तूं ऐसे पापकार्य मत कर, धर्माचरण कर, प्रजा का अच्छी तरह संरक्षण, पालन कर। किंतु उसके आज तक भी कभी आने का प्रश्न ही नहीं है / अतः हे भंते! आत्मा कोई अलग चीज नहीं है, शरीर ही आत्मा है और शरीर के नष्ट होने के बाद कोई भी अलग चीज रूप आत्मा की कल्पना करना गलत है। केशी- राजन् ! तम्हारा दादा नरक में गया होगा फिर भी नहीं आ सकता है। इसका कारण यह है कि- यदि तुम्हारी राणी सूर्यकांता के साथ कोई पुरुष इच्छित कामभोगों का सेवन करे और उसे तुम देख लो तो क्या दंड़ दोगे? | 131