________________ आगम निबंधमाला वाला यह सजग एवं सजीव उदाहरण है। पुष्पनंदी राजा ने जिनधर्म स्वीकार किया या नहीं इस सम्बन्ध में प्रस्तुत अध्ययन में कोई संकेत नहीं है। (5) इस अध्ययन का नाम सहसोदाह भी मिलता है इस अपेक्षा पूर्व भव में उसने(देवदत्ता के जीव ने) करीब 1000 को जलाया होगा, जिसमें 499 पत्नियों को भी जलाया हो, ऐसा अनुमान होता है / अंजुश्री :- (1) कोई भी तीव्रतम वेदना प्रायः लम्बे समय तक नहीं टिकती है। किन्तु कभी किसी के प्रगाढ़ कर्मों का उदय हो तो ऐसा हो भी जाता है। यथा-अंजुश्री की योनिशूल वेदना / उसने पूर्वभव में 3500 वर्ष वेश्या रूप में भोगासक्ति पूर्वक जीवन व्यतीत किया था। वहाँ से मर कर छट्ठी नरक में गई, फिर यहाँ अंजुश्री बनी। रोती चिल्लाती 90 वर्ष में मरकर प्रथम नरक में गई। (2) भोगविलास इन्द्रिय विषयों के सुख या आनंद जीव के लिए मीठे जहर के समान है / कवि ने कहा भी है मीठे मीठे कामभोग में, फँसना मत देवानुप्रिया / - बहुत बहुत कड़वे फल पीछे, होते हैं देवानुप्रिया // आगम में भी कहा है-संसार मोक्खस्स विपक्खभूया, खाणी अणत्थाण हु कामभोगा / अर्थात् ये कामभोग मोक्ष के विरोधी एवं अनर्थों की खान के समान है। अतः इनसे विरक्त होकर सदा के लिये भोगों का त्याग कर देने वाला पुरुष संसार सागर से तिर जाता है। (3) व्यक्ति अपने घर घराणे का, सत्ता का या धन का अहंभाव घमंड़ करता रहता है, किन्तु तीव्र कर्मोदय होने पर ये कोई भी त्राणभूत, शरणभूत नहीं होते हैं / जीवन में धर्म के संस्कार न हों तो वह जीव ऐसे दुःखों से महा दुःखी बनता है और आर्तध्यान एवं संकल्प विकल्पों में मरकर आगे भी दुःख परंपरा को बढ़ाता है / (4) किन्तु यदि जीवन को धर्मसंस्कारों, आचरणों से भावित एवं अभ्यस्त किया हो तो ऐसी विकट दुःखमय घड़ियों में भी व्यक्ति कर्मों का एवं आत्मा का बोध स्मृतिपट पर लाकर शान्ति से उन कर्मों को चका कर आगे का भविष्य कल्याणमय बना सकता है / [114] - मा०