________________ आगम निबंधमाला को, विज्ञान के कल्पना मूलक कथनों से, प्रत्यक्षीकरण का झूठा आलंबन लेकर बाधित करना एवं गलत कहना समझ भ्रम मात्र है। चन्द्रलोक की यात्रा व्यर्थ :- वैज्ञानिकों की चन्द्रलोक यात्रा और उसके प्रयास हेतु किये गये खर्च अभी तक कुछ भी कामयाब नहीं हुए हैं। उन्हें पश्चाताप के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं लगा है। वास्तव में मूल दृष्टिकोण सुधारे बिना वैज्ञानिकों को ज्योतिष मंडल के संबंध में किसी भी प्रकार की उपलब्धि नहीं हो सकती, यह दावे के साथ कहा जा सकता है। क्यों कि ज्योतिष मंडल वैज्ञानिकों की शक्ति सामर्थ्य से बाह्य सीमा में है और उनके संबंधी कल्पनाएँ भी वैज्ञानिकों की सत्य से बहुत दूर है। अतः कल्पनाओं में बहते रहने में ही उन्हें संतोष करते रहना होगा / पृथ्वी के संबंध में खोज करते रहने पर तो आगे से आगे किसी क्षेत्र की उपलब्धि इन्हें हो सकती है, किसी नये नये सिद्धांतों की प्राप्ति भी हो सकती है किन्तु दैविक विमान रूप ज्योतिष मंड़ल जो कि अति दूर है उन्हें आग का गोला या पृथ्वी का टुकड़ा मान कर चलने से कुछ आना जाना नहीं है, व्यर्थ की महेनत और देश का खर्च है। अतः वैज्ञानिकों को ज्योतिष मंडल के संबंध में महेनत करने के पूर्व धर्म सिद्धांतों के अध्ययन मनन का एवं सही श्रद्धा करने का विशेष लक्ष्य रखना चाहिये / क्यों कि धर्म सिद्धांत और ज्योतिषशास्त्र ही ज्योतिष मंडल के अधिकतम सही ज्ञान के पूरक है। स्वतंत्र कल्पनाओं से उसका सही ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता है। पुनश्च :- पृथ्वी स्थिर है असंख्य योजनमय एक राजू प्रमाण विस्तृत है। सूर्य चन्द्र आदि गति मान है सदा भ्रमणशील है। सदा एक ही ऊँचाई पर रहते हुए अपने अपने मंडलों मार्गों में चलते रहते हैं। हमें दिखने वाले सूर्य चन्द्र तारे आदि ये ज्योतिषी देवों के गतिमान विमान है। ये हमें प्रकाश एवं ताप देते हैं / दिन रात रूप काल का वर्तन करते हैं / ये भिन्न-भिन्न गति वाले हैं / अतः कभी आगे कभी पीछे कभी साथ में चलते हुए देखे जाते हैं / इस संबंधी विविध वर्णन ज्योतिषगण-राज-प्रज्ञप्ति सूत्र में बताया गया है जिसका ध्यान पूर्वक अध्ययन मनन एवं श्रद्धान करना चाहिये। 51