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उत्तराध्ययन सूत्र
(२२) विछौने पर लेटे २ अथवा अपने आसन पर बैठे २ गुरु
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जी से प्रश्नोत्तर नहीं करने चाहिये | गुरुजी के पास जाकर, हाथ जोड़कर और नम्रता पूर्वक बैठकर अथवा खड़े होकर समाधान करना चाहिये ।
(२३) ( गुरु को चाहिये कि ) ऐसे विनयी शिष्य को सूत्र वचन और उनका भावार्थ, उसकी योग्यता ( पात्रता ) अनुसार' समझावे ।
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भिक्षुओं का व्यवहार कैसा होना चाहिये ?
(२४) भिक्षु कभी असत्य भाषण न करे | कभी भी निश्चयात्मक ( अमुक बात ऐसी ही है अथवा अन्य रूप में हो ही नहीं सकती इत्यादि प्रकार के ) वचन नहीं कहने चाहिये । भाषा के दोष (द्वयर्थी शब्द प्रयोग, जिससे दूसरे को भ्रम या धोखा हो ) से बचे और न मन में कपट भाव ही रक्खे |
(२५) पूंछने पर सावद्य ( दूपित ) न कहे । अपने स्वार्थ के लिये अथवा अन्य किसी भी कारण से ऐसे वचन न बोले जो निरर्थक (अर्थशून्य ) हो अथवा जो सुनने वाले के हृदय में चुभे ।
(२६) ब्रह्मचारी को एकान्त के घर के पास, लुहार की दुकान
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अथवा अन्य योग्य स्थान में अथवा दो घरों के बीच
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की तंग जगह में अथवा सरियाम मार्ग में अकेली स्त्री के पास न तो खड़ा ही होना चाहिये और न उससे संभापण ( बातचीत ) ही करना चाहिये ।.