________________
४२६
उत्तराध्ययन सून
(६७) संसार से पार गये हुए, उत्तम सिद्ध गति को प्राप्त केवल
ज्ञान तथा केवल दर्शन के स्वामी ऐसे वे सब सिद्ध भग
वान लोक के अग्र भाग में स्थिर हैं। (६८) तीर्थकर भगवान ने संसारी जीवों के दो भेद कहे है:
(१) त्रस, और (२) स्थावर। स्थावर जीवों के भी
तीन भेद है। (६९) (१) पृथ्वीकाय, (२) जलकाय, (३) वनस्पतिकाय ।
इन तीनों के भी उपभेद हैं उन्हें मैं कहता हूँ, तुम ध्यान
पूर्वक सुनो । (७०) पृथ्वोकाय जीवों के (१) सूक्ष्म, और (२) स्थूल ये
दो भेद है। और इन दोनों के (१) पर्याप्त, तथा
(२) अपर्याप्त ये दो दो उपभेद हैं।। (७१) स्थूल पर्याप्त के दो भेद हैं (१) कोमल और ( २) कर्कश
इनमें से कोमल के ७ भेद हैं:(७२) (१) काली, (२) नीली, (३) लाल, (४) पीली,
(५) सफेद, (६) पांडुर ( सफेद चन्दन जैसी) और (७) अत्यन्त वारीक रेत-ये सातभेद कोमल पृथ्वी
के हैं कर्कश पृथ्वी के ३६ भेद है:(७३) (१) पृथ्वी (खान को मिट्टी), (२) कंकरीली, (३)
रेती, (४) पत्थरीली छोटी २ कंकरी, (५) शिला, (६) समुद्रादि का खार, (७) लोनी मिट्टी, (८) लोह, (९) तांबा, (१०) कलई, (११) सीसा,, (१२) चांदी, (१३) सोना, (१४) बन्नीरा