Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Saubhagyachandra
Publisher: Saubhagyachandra

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Page 520
________________ ४३८ उत्तराध्ययन सूत्र ( १५७) (४) पंकप्रभा, (५) धूमप्रभा, (६) तमः प्रभा ( ७ ) तमः तमस् प्रभा ( महातमप्रभा ) । इस प्रकार इन भूमियों में रहनेवाले नारकी सात प्रकार के हैं । (१५८) वे सब लोक के एक विभाग में स्थित हैं। अब मैं उनका ४ प्रकार का कालविभाग कहता हूँ: - (१५९) प्रवाद की अपेक्षा से तो ये सभी अनादि एवं अनन्त हैं किन्तु श्रायुष्य की अपेक्षा से यदि एवं अन्त सहित हैं । की जघन्य स्थिति १० हजार वर्षों (१६०) पहिले नरक में श्रायु की और उत्कृष्ट स्थिति एक सागर की है । (१६१) दूसरे नरक में आयु की जघन्य स्थिति एक सागर की तथा उत्कृष्ट स्थिति तीन सागर की है । (१६२) तीसरे नरक में श्रायु की जघन्य स्थिति तीन सागर की तथा उत्कृष्ट स्थिति सात सागर की है । (१६३) चौथे नरक में आयु की जघन्य स्थिति सात सागर की तथा उत्कृष्ट स्थिति दस सागर की है। (१६४) पाँचवे नरक में आयु की तथा उत्कृष्ट स्थिति सत्रह ( १६५) छट्टे नरक में चायु की जघन्य स्थिति दस सागर की सागर की है । जघन्य स्थिति सत्रह सागर की तथा उत्कृष्ट स्थिति वाईस सागर की है । (१६६) सातवें नरक में आयु की जघन्य स्थिति वाईस सागर की तथा उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागर की है। (१६७) नरक के जीवों की जितनी जघन्य अथवा उत्कृष्ट आयु होती है उतनी ही काय स्थिति होती है ।

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