Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Saubhagyachandra
Publisher: Saubhagyachandra

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Page 529
________________ ४४५ जीवाजीवविभक्ति (२०६) ( १ ) चन्द्र, ( २ ) सूर्य, (३) ग्रह, ( ४ ) नक्षत्र, (५) प्रकीर्णक ( तारे ) ये ५ भेद ज्योतिष्क देवों के हैं । अढाई द्वीप के ज्योतिष्क देव हमेशा गति करते रहते हैं । अढाई द्वीप बाहर के जो ज्योतिष्क देव हैं वे स्थिर हैं । (२०७) वैमानिक देव दो प्रकार के होते हैं ( १ ) कल्पवासी, और (२) कल्पवासी ( कल्पातीत ) । (२०८) क्ल्पवासी देवों के १२ प्रकार हैं : - ( १ ) सौधर्म, (२) ईशान, (३) सनत्कुमार, (४) महेन्द्र, (५) ब्रह्मलोक, ( ६ ) लांतक | (२०९) (७) महाशुक्र, ( ८ ) सहस्रार, ( ९ ) श्रानत, (१०) प्राणत, ( ११ ) आरण और ( १२ ) अच्युत । इन सब स्वर्गों में रहनेवाले देव १२ प्रकार के कल्पवासी देव कहाते हैं । (२१०) (१) प्रैवेयक और ( २ ) अनुत्तर ये दो भेद कल्पातीत देवो में है । ग्रैवेयक ९ हैं ----- (२११) मैवेयक देवों की तीन त्रिक ( तीन तीन की श्रेणी ) ( १ ) ऊपर की, ( २ ) मध्यम की और, (३) नीचेकी, प्रत्येक त्रिक के ( १ ) ऊपर ( २ ) मध्य और ( ३ ) नीचली- ये तीन तीन भेद हैं । ( इस तरह ये सब मिलाकर ९ हुए ) ( १ ) निचली त्रिक के नीचे स्थान के देव, (२) निचली त्रिक के मध्यम स्थान के देव, और ( ३ ) निचली त्रिक के ऊपरी स्थान के देव ।

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