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उत्तराप्ययन सूत्र
RAANANARNAAMANA
(१९) सब भिक्षुओं को या सब गृहस्थों को प्राप्त नहीं होता है
किन्तु कठिन व्रत पालने वाले भिक्षुओं और भिन्न २ प्रकार के सदाचार सेवन करने वाले गृहस्थों को ही प्राप्त
होता है। (२०) बहुत से फुसाधुओं की अपेक्षा गृहस्थ भी अधिक संयमी
होते हैं किन्तु साधुता की दृष्टि से तो सब गृहस्थों की
अपेक्षा साधु ही अधिक संयमी होता है। टिप्पणी-यह गाथा अत्यन्त गम्भोर और सो संयम का प्रतिपादन
कानेवाली है। वेश या अवस्था विशेप संयम के पोपक या बाधक
है ही नहीं। (२१) बहुत काल से धारण किया हुआ चर्म, नग्नत्व, जटा,
. संघाटि (बौद्ध साधुओं का उत्तरीय वस्त्र), या मुंडन आदि ME समी चिन्ह दुराचारी वेशधारी साधु की रक्षा नहीं कर
" सकते। टिप्पणी- भिन्न भिन्न चिन्ह ( तिलक, छापे, धर्म, जटा आदि ) ___ संयम के रक्षक नहीं है केवल सदाचार ही संयम का रक्षक है। (२२) भिक्षाचरी करनेवाला भिक्षु भी यदि दुराचारी होगा तो
वह नरक से नहीं छूट सकता। (सारांश यह है कि) चाहे भिक्षु हो या गृहस्थ, जो कोई भी सदाचारी होगा
वही स्वर्ग में जा सकता है । टिप्पणी-साधु नरक नहीं जाता या श्रावक नरक नहीं नाता ऐसा
टका किसी ने नहीं लिया। जो कोई भी जिस किसी अवस्था में रह कर दुराचार करेगा वह अवश्य ही नरकगामी होगा और जो कोई सदाचार सेवन करेगा यह स्वर्ग प्राप्त करेगा।