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उत्तराध्ययन सूत्र
हमारी भी मान्यताए थीं, परन्तु अव तत्व का स्वरूप जानने के बाद
वह यात हृदय में बिलकुल नहीं उतरतो । (२१) सव दिशाओं से घिरा हुआ यह सारा संसार तीक्ष्ण शस्त्र
धारों (प्राधि, व्याधि तथा उपाधि के तापों) से हना जा रहा है। ऐसी दशा में हमें गृहजीवन में लेशमात्र भी.
प्रीति उत्पन्न नहीं होती । (ऐसा पुत्रों ने कहा ) (२२) ( पिता ने कहा:-) हे पुत्रो ! यह संसार किससे आवृत्त
घिरा हुआ) है ? कौन इसे हन ( मार ) रहा है ? संसार में कौन से तीक्ष्ण शस्त्रों की धार पड़ रही हैं ? इन्
सबके उत्तर मुम शंकित हृदय को शीघ्र दो । (२३) (पुत्रों ने उत्तर दियाः-) हे पिताजी ! यह सारा जीवलोक
मृत्यु से पीड़ित है और वृद्धावस्था द्वारा प्रावृत्त है। तीक्ष्ण अस्त्र की धार रूपी दिन रात हैं जो श्रायु को प्रतिक्षण काट २ कर कम कर रही हैं। हे पिताजी ! आप इसा
को खूब सोची विचारो। (२४) जो दिन गत निकल जाता है वह फिर कभी लौट कर
वापिस नहीं श्राता । तब ऐसे छोटे समय वाले जीवन में अधर्म करने वाले का जीवन बिलकुल निष्फल चला
जाता है। टिप्पणी-अमूल्य घड़ियां (क्षण ) फिर फिर नहीं मिलता
समय चला जाता है किन्तु उसका पश्चात्ताप हो रह जाता
हाय हाय ! समय निकल गया और हम कुछ न कर पाजीही (२५) जो दिनराक-
निकी प्रश्नम ,