Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Saubhagyachandra
Publisher: Saubhagyachandra

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Page 498
________________ ४१८ उत्तराध्ययन सूत्र ( काल ) का क्षेत्र मनुष्य क्षेत्र के बराबर है ( अर्थात् ४५ लाख योजन है ) । ( ८ ) ( काल दृष्टि से वर्णन ) धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय – ये तीनों द्रव्य काल की अपेक्षा से अनादि एवं अनंत है अर्थात् प्रत्येक काल में शाश्वत हैं ऐसा भगवान ने कहा है । ( ९ ) समय काल भी निरन्तर प्रवाह ( व्यतीत ) होने की दृष्टि से अनादि तथा अनंत है परन्तु किसी अमुक कार्य की अपेक्षा से वह सादि ( आदि सहित ) तथा सान्त (अन्त सहित ) है । (१०) ( १ ) स्कंध, ( २ ) स्कंध के देश, ( ३ ) उसके प्रदेश, तथा ( ४ ) परमाणु-ये ४ भेद रूपी पदार्थ के होते हैं । (११) द्रव्य की अपेक्षा से, जब बहुत से पुद्गल परमाणु इकट्ठे होकर परस्पर में मिल जाते हैं तब स्कंध बनता है और जव वे जुड़े २ रहते हैं तब 'परमाणु' कहलाते हैं । क्षेत्र की अपेक्षा से, स्कंध लोक के एक देश व्यापी हैं । और परमाणु समस्त लोक व्यापी हैं । । अथ पुद्गल स्कंधों की कालस्थिति चार प्रकार से कहता हूँ । टिप्पणी- लोक के एक देश में अर्थात् अमुक एक आकाश प्रदेश में स्कंध हों और न भी हों, किन्तु वहां परमाणु तो अवश्य होता है । (१२) संसार प्रवाह की दृष्टि से तो वे सब अनादि तथा अनन्त हैं किन्तु रूपान्तर होने तथा स्थिति की अपेक्षा से वे सादि एवं सान्त हैं ।

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