________________
समितियां
२७३
-
-
~
~
~
~
~
~
टिप्पणी-छोटा गोच्छा ( छोटा ओघा) जो संयमी का झाड़ने का साधन
माना जाता है उससे सूक्ष्म जीवों को भी विराधना न हो इस प्रकार पात्र भादि को झाड़ने -पोछने की क्रिया को 'परिमार्जन' क्रिया
कहते हैं। (१५) मल, मूत्र, धुंक, नाक, शरीर का मैल, अपथ्य आहार,
पहिना न जासके ऐसा फटा वस्त्र, किसी साधु का शव . (मृत शरीर), अथवा अन्य कोई फेंक देने की अनुप। योगी वस्तुएं हों तो उनको जहां तहां न फेंक ( या डाल)
कर उचित ( जीव रहित एकांत ) स्थल में ही छोड़े। टिप्पणी-परिहार्य वस्तुएं भस्थान में फेंक देने से गंदगी, रोग, तथा
उपद्रव पैदा होते है, जीवजन्तुओं की उत्पत्ति और उनकी हिंसा होती है, आदि अनेक दोप होते हैं इसीलिये फेक देने जैसी गौण 'क्रिया में भी इतना अधिक उपयोग रखने का उपदेश देकर जैनधर्म ने वैज्ञानिक, वैयक, तथा धार्मिक दृष्टियों का सर्वमान्य तथा सुन्दर
समन्वय कर दिखाया है। (१६) वह स्थान १० विशेषणों से युक्त होना चाहिये जिनमें से
प्रथम विशेषण के ये चार भेद कहे हैं:-(१) उस समय वहां कोई भी मनुष्य आता जाता न हो और वहां किसी की दृष्टि भी न पड़ती हो ऐसा स्थान; (२) यद्यपि पास से कोई मनुष्य आता जाता न हो किन्तु दूर से किसी की दृष्टि वहां पड़ सकती हो ऐसा स्थान; (३.) यद्यपि मनुष्य पास से निकल जाते हैं फिर भी उनकी दृष्टि वहां पर नहीं पड़ सकती ऐसा गुप्त स्थान; (४) जहां लोग आते जाते भार हैं और जहां सबकी निगाह भी पड़ती है