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कर्मप्रकृति
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कमों की प्रकृतियां
३३ में यह समस्त जगत का अचल अटल नियम है ।
पर इस नियम के वशीभूत होकर सारा संसार नाच रहा है। यह कायदा नया नहीं है, अनादि एवं अनन्त है । कोई कितना भी वली क्यों न हो, किन्तु उसकी इसके सामने कुछ भी दाल नही गलती। .
अनेक बड़े २ समर्थ शूरवीर, महान योगीपुरुप और बड़े बड़े प्रचण्ड चक्रवर्ती राजा होगये, वे भी इस कायदे से नहीं छुटे । अनेक देव, दानव, राक्षस, ग्रादि भी हुए । उनको भी इसके सामने अपनी नाक रगड़नी ही पड़ी। ___ इस कर्म की रचना गंभीर है। कर्माधीन पड़ा हुया यह जीवात्मा, अपने स्वरूप को देखते हुए भी भूल जाता है, देखते हुए भी नहीं देखता है। जढ़ के घर्षण से विविध सुखदुःख का अनुभव करता है और उन्हीं में ऐसा तन्मय होता है कि अनेक गतियों में जड़ के साथ ही साथ इस संसार चक्र में परिचमण करता रहता है।