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अकाम मरणीय
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टिप्पणी-जैन शास्त्रों में ७ नरकों का विधान है जहां कृत कर्मों की भयंकरता के फलस्वरूप उत्तरोत्तर अकल्पनीय वेदनाएं नारकियों को भोगनी पड़ती हैं। (१३) वहां औपपातिक (स्वयं कर्मवशात् उत्पत्ति होती है ऐसे
नरक) स्थानों जिनके विषय में मैंने पहिले सुना है, वहां
जाकर जीव कृत कर्मों का खूब ही पश्चात्ताप करते हैं।" (१४) जैसे गाड़ीवान जान-बूझ कर सरियाम रास्ता को छोड़ कर
विषम मार्ग में जाय और वहां गाड़ी की धुरी टूटने से
शोक करता है। (१५) उसी तरह धर्म को छोड़कर अधर्म को ग्रहण कर मृत्यु
के मुंह में गया हुआ वह पापी जीव, मानों जीवन की
धुरा टूट गई हो वैसे ही शोक करता है। (१६) उसके बाद वह मूर्ख, मरण के अंत में भय से त्रस्त होकर
कलि (जुए के दाव) से हारे हुए ठग की तरह काम
मरण की मौत मरता है। टिप्पणी-जुए में कभी २ जिस तरह धूर्त भी हार जाते हैं वैसे ही
भकाममरण से ऐसा पापी जीव जन्म की बाज़ी हार जाता है। . (१७) यह बालकों (मूर्ख प्राणियों) के अकाम मरण के विषय
में कहा। अब पंडितों (पुण्यशील पुरुषों) के सकाम मरण के विषय में मैं कहता हूँ वह ध्यान पूर्वक सुनो-ऐसा
भगवान सुधर्म स्वामी ने कहाः(१८) पुण्यशाली (सुपवित्र ) पुरुषों, ब्रह्मचारियों और संयमी
पुरुषों का व्याघातरहित और अति प्रसन्नता पूर्ण वह मरण, जैसा कि मैंने सुना है