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इघुकारीयं
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को तोड़ कर एक ही साथ इन चार समर्थ आत्माओं के महाभिनिष्क्रमण से एक अपूर्व जागृति आती है। सारा नगर धन्यवाद को ध्वनियों से गूंज उठता है । इस को सुन कर वहाँ की रानी की भी पूर्वभव की प्रेरणा जागृत होती है और उसका असर यकायक राजा पर भी पड़ता है। इस तरह से छः प्रात्माएं संयम मार्ग अंगीकार कर कठिन तपश्चरण द्वारा अंतिम ध्येय मोक्ष को प्राप्त होते हैं। तत्सम्बन्धी पूरा वर्णन इस अध्ययन में किया गया है।
भगवान बोले(१) पूर्वभव में देव होकर एक ही विमान में रहने वाले कुछ
(छः ) जीव देवलोक के समस्त रम्य, समृद्ध, प्राचीन
तथा प्रसिद्ध ऐसे इषुकार नगर में पैदा हुए । (२) अपने बाकी बचे हुए कर्मों के उदय से वे उच्चकुल में पैदा
हुए और पीछे से संसारभय से भयभीत होकर समस्त श्रासक्तियों को छोड़ कर उनने जिनदीक्षा (संयम धर्म) की
शरण ली। (३) उन छः जीवो में से एक पुरोहित तथा दूसरा जसा नाम की
उसकी पत्नी थी और दूसरे दो जीव मनुष्य जन्म पाकर
उनके यहां कुमार रूप में अवतीर्ण हुए। विहाणी-इस प्रकार ये ४ जीव ब्राह्मण कुल में तथा २ जीप वहाँ के तथा जा रानी के रूप में क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुए। काटा जरा और मृत्यु के भय से डरे हुए और इसी कारण
कुमार संसार चक्र