Book Title: Agam 30 Prakirnak 07 Gacchachar Sutra
Author(s): Punyavijay, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 12
________________ भूमिका चार कुल ये--(१) ब्रह्मलीय, (२) वस्त्रलीय, (३) वाणिज्य तथा (४) प्रश्न वाहन। स्थविर सुस्थित एवं सुप्रतिबुद्ध के पाँच शिष्य हुए, उनमें से स्थविर प्रियग्रन्थ से कोटिकगण की मध्यमाशाखा निकली। स्थविर विद्याधर गोपाल से विद्याधरी शाखा निकली। स्थविर आर्य शान्ति श्रेणिक से उच्च गरी शाखा निकली । स्थविर आयं शान्तिश्रेणिक के चार शिष्य हुए -(१) स्थविर आर्य श्रेणिक, २) स्थविर आर्य तापस, (३) स्थविर आयं कुबेर और (४) स्थविर आय ऋषिपालित । इन चारों शिष्यों से क्रमशः चार शाखाएं निकलीं- (१) आर्य श्रेणिका, (२) आर्य जामती: (३) मी और (0) आर्य ऋषिपालिता। स्थविर आर्य सिंहगिरि के चार शिष्य हुए--(१) स्थविर आर्य धनगिरि, (२) स्थविर आर्य बज्र (३) स्थविर आर्य सुमित और (४) स्थविर आर्य अर्हद्दत । स्थविर आर्य सुमितसरि से ब्रह्मदीपिका तथा स्थविर आर्य वनस्वामी से बनीशाखा निकली। आर्य वस्त्रस्वामी के तीन शिष्य हुए-(१) स्थविर आर्य वनसेन, (२) स्थविर आर्य पद्म और (३) स्थविर आर्यरथ । इन तीनों से क्रमशः तीन शाखाएँ निकली - (१) आर्य नागिला, (२) आर्य पद्मा और (३) आर्य जयन्ती। इस प्रकार कल्पसूत्र स्थविरावली में मुनि संघों के विविध गणों, कुलों और शाखाओं के उल्लेख तो उपलब्ध होते हैं, किन्तु उसमें कहीं भी 'गच्छ' शब्द का उल्लेख नहीं हआ है । अर्द्धमागधी आगम साहित्य के अंग-उपांम ग्रन्थों में हमें कहीं भी 'गच्छ' शब्द का प्रयोग मुनियों के समूह के अर्थ में नहीं मिला है, अपितु उनमें सर्वत्र 'गच्छ' शब्द का प्रयोग 'गमन' अर्थ में ही हुआ है। ईसा की पहली शताब्दी से लेकर पांचवीं-छठी शताब्दी तक के मथुरा आदि स्थानों के जो अभिलेख उपलब्ध होते हैं उनमें भी कहीं भी 'गच्छ' शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है । वहाँ सर्वत्र गण, कुल, शाखा और अन्वय के ही उल्लेख पाये जाते हैं। दिगम्बर एवं यापनीय परम्परा के भी जो प्राचीन अभिलेख एवं ग्रन्थ पाये जाते हैं; उनमें भी गण, कुल, शाखा एवं अन्वय के उल्लेख ही मिलते हैं । गच्छ के उल्लेख

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