Book Title: Agam 30 Prakirnak 07 Gacchachar Sutra
Author(s): Punyavijay, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 40
________________ गच्छायारपइफ्णय स एव भव्वसत्ताणं चक्खुभए वियाहिए। दसेइ जो मिणुद्दिढ अणुट्ठाणं जट्ठियं ।।२६।। तिस्थयरसमो सूरी सम्म जो जिणमयं पयासे ।। भाणं अइक्कमंतो सो काउरिसो, न सप्पुरिसो ॥२७॥ भदायारो सरी १ भदायाराणवेक्खओ सूरी २१ उम्मगठिो सूरी ३ तिनि वि मगं पणासंति ॥२८॥ उम्मग्गठिए सम्मागनासए' जो य सेवए सूरी । नियमेणं सो गोयम ! अप्पं पाडेइ संसारे ॥२९।। जम्मम्गठिओ एक्को विनासए' भश्वसत्तसंघाए। तम्मग्गमणुसरते जह कुत्तारो' नरो होइ ॥३०॥ उम्मग्गमग्गसंपट्ठियाण सूरीण गोयमा ! पूर्ण । संसारो य अणतो होइ" य सम्मग्गनासीणं ॥ ३१॥ सुद्धं सुसाहुमगं कहमाणो ठवई तइयपक्खम्मि । अप्पाणं, इयरो पुण गित्थधम्माओ' चुक्को ति ॥३२।। जइ वि न 'सक्कं काउ सम्म जिणभासियं अणुट्ठाणं । 'तो सम्म भासिज्जा जह भणियं खीणरागेहि ॥३३।। ओसन्नो वि विहारे कम्मं सोहेइ सुलभबोही य । चरण-करणं विसुद्ध उहितो पवितो ॥३४॥ १. सम्मत्तना सं० ॥ २. “ए सन्न ।। ३. कुत्तारू न सा० सं० पु० ।। ४. ण साहूण जे० पु० ब० ॥ ५. होई स* जे० ।। ६. चुक्कु त्ति ज० पु० । चुपकेति सा० ॥ ७. सक्कइ का सं५ ।। ८. ता जे० ॥

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