Book Title: Agam 30 Prakirnak 07 Gacchachar Sutra
Author(s): Punyavijay, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
गच्छायारपइपणय
जीहाए विलिहतो न भइओ सारणा जहिं नत्थि । डंडेण वि ताईतो स भहओ सारणा जत्थ ॥१७॥
सोसो वि वेरिओ सो उ जो गरुं न विबोहए । पमायमइराघत्थं सामायारी विराहयं ॥१८॥
तुम्हारिसा वि मुणिवर ! पमायवसगा हवेति जइ पुरिसा । तो को अन्नो अम्हं आलं बण होज्ज संसारे ? ॥१९॥
नाणम्मि दसणम्मि य चरणम्मि य तिसु वि समयसारेसु । घोएइ जो ठवेउ मणमप्पाणं च सो य गणी ॥२०॥
पिई उवहिं सेज्जं उगमउप्पायणेसणासुद्धं । चारित्तरक्खणट्ठा सोहितो होइ स चरित्ती ॥२१॥
अप्परिसावी सम्म समपासी चेव होइ कज्जेसु । सो रक्खाइ चक्खू पिव सबाल-बुड्ढाउलं गच्छं ।।२२।।
सीयावेइ विहारं सुहसीलगुणहिं जो अबुद्धीओ। सो नवरि लिंगधारी संजमजोएण' निस्सारो ॥२३॥
कुल गाम नगर रज्ज पययि जो तेसु कुणइ ह" ममत्तं । सो नवरि लिंगधारी संजमजोएण' निस्सारो ॥२४॥
विहिणा जो उ चोएइ, सुतं अस्थं च गाहए। सोधण्णो, सो य पुण्णो य, स बंधू मोक्खदायगो॥२५॥
१. 'मयरा सं० ॥ २. तेणऽनो को अपु. वृ०॥ ३. य सं० ।। ४. 'मसारेण नि जे० सं० । 'मधारेण नि पु० ॥ ५. अ सा० ।। ६. "मसारेण पु० ।। ७. नीसारो सं० ।।

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68