Book Title: Agam 30 Prakirnak 07 Gacchachar Sutra
Author(s): Punyavijay, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 36
________________ गच्छायारसइण्णाये मेदी आलंबणं खंभं दिट्टी जाणं सुउत्तम । सूरी 'जं होइ गच्छस्स तम्हा तं तु परिक्खए ।।८।। भयब ! केहिं लिंगेहि सूरि उम्मगपट्ठियं । वियाणिज्जा छउमत्थे मुणी ? तं मे निसामय ॥९॥ सच्छंदयारि दुस्सीलं, आरंभेसु पबत्तयं । पीढयाइपडीबद्धं, आउक्कायविहिंसगं ॥१०॥ मूलुत्तरगुणब्भ, सामायारीविराहयं । अदिनालोयणं निच्चं निच्च विगहतरायणं ।।११।। छत्तीसगुणसमन्नागएण तेण वि अवस्स दायवा। परसक्खिया विसोही सुट्ट दि ववहारकुसलेणं ।।१२।। जह सुकुसलो वि विज्जो अन्नस्स कहे अत्तणो वाहि । विज्जुबएस सुच्चा पच्छा सो कम्ममायरइ ।।१३।। देसं खेत्तं तु जाणित्ता वत्थं पत्तं उवस्सयं । संगहे साहुबम्गं च, सुत्तत्थं च निहालई" ||१४|| संगहोवग्गहं विहिणा न करेइ य जो मणी । समणं समणि तु दिक्खित्ता सामायारि न गाहए ॥१५॥ बालाणं जो उ सीसाणं जीहाए उलिपए। न सम्ममग्गं गाहेइ सो सूरी जाण वेरिओ ॥१६॥ १. उ सं० ।। २. सूरी सं० ॥ ३. मग्गट्टियं च जाणेज्जा छउमत्ये ? तं मे सं०॥ ४, विज्जोबएस सोचा सं० पु० ॥ निहालिई सं० पु०॥

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