Book Title: Agam 30 Prakirnak 07 Gacchachar Sutra
Author(s): Punyavijay, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
२८
मच्छायारपण्णयं
बुड्डाणं तरुणाणं रति अज्जा कहेइ जा धम्मं । सा गणिणी गुणसायर ! पडणीया होइ गच्छस्स ।। ११६ ।।
जत्थ य समणीण मसंखडाई गच्छमि नेव जायंति । तं गच्छ गच्छवरं निहत्यभासाओ तो जत्थ ॥११७॥
जो जत्तो वा जाओ नाऽऽलोयइ दिवस पक्खियं यावि सच्छंदा समणीओ मयहरियाए न ठायंति ॥ ११८ ॥
विटलियाणि पतंजति, गिलाणसेहीण नेय तप्पंति । अणगाढे आगाढं करेंति, आगादि अणगाढं ॥ ११९ ॥
अजयणाए पकुर्व्वति पाहुणगाण अवच्छला । चित्तलयाणि य सेवंति, चित्ता रहरणे तहा ||१२||
इ-विभमाइएहि आगार विगार तह पगासिति । जहर वुड्ढाणवि मोहो समुईरद्द, किं नु तरुणाणं ? ॥१२१॥
बहुसो उच्छोलिती मुह नयणे हत्य-पाय कक्खाओ । fruts * रागमंडल सोइंदिय तह य कब्बट्टे ॥१२२॥
५.
जत्य य बेरी तरुणी थेरी तरुणी य अंतरे सुयइ । गोयम ! तं गच्छवरं वरनाण चरित्तआहारं ।।१२३||
धोति कंठियाओ पोइति य तह य दिति पोत्ताणि । गिहकज्जचितगीओ, न हु अज्जा गोयमा ! ताओ || १२४||
१. दाद व सब गम सं० ॥। २. नेव तिप्पति सा० ॥ ३ जन कमढगाण मोहो [सं० । जह कब्ज ( प्प ) दृगाण मोहो जे० ॥ ४. गिन्हव रामण मंडभोईति तह सं० ।। ५. कप्पट्ठे पु० । कप्पस्य सं० ॥

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68