Book Title: Agam 30 Prakirnak 07 Gacchachar Sutra
Author(s): Punyavijay, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 59
________________ गच्छाचार-प्रकीर्णक ( १०७-१३४ साध्वी स्वरूप वर्णन अधिकार ) (१०७) जहाँ क्षुल्लिका अथवा तरुण साध्वी उपाश्रय में अकेली रहती हो, हे गौतम ! उस बिहार (उपाश्रय) में ब्रह्मचर्य की शुद्धि की क्या अपेक्षा की जा सकती है? (१०८) जहां रात्रि के समय में अकेली साध्वी दो हाथ भी उपाश्रय से बाहर जाती हो, उस गच्छ की क्या मर्यादा है ? अर्थात वह गच्छ मर्यादाहीन है। (१०९) जहाँ अकेली साध्वी अकेले साधु से, चाहे वह उसका सगा भाई ही क्यों न हो, अकेले में वार्तालाप करती हो तो हे सौम्य गौतम ! वह गच्छ गच्छ के गुणों से रहित है। ११०) यदि साम्बी गृहस्थ के साथ कारनकार ६ जश्लील वचन बोलती है तो वह साध्वी अपनी आत्मा को चतुर्गति संसार-समुद्र में अवश्य गिरा देती है। (१११) जहां साध्वी अति सष्ट होकर गृहस्थ की भाषा अर्थात् सावध भाषा बोलती हो, हे गुणों के सागर गौतम ! उस गच्छ को साधुता के गुणों से रहित जानों। (११२) हे गणि गौतम ! जो साध्वी उचित श्वेत वस्त्रों को त्यागकर विविध प्रकार के रंगीन वस्त्रों को धारण करती हो, वह वास्तव में साध्वी नहीं कही जा सकती है। (११३-११५) जो साध्वी गृहस्थों के फटे हुए वस्त्रों को सीती हो, उनके वस्त्रों में बेल-बूटा आदि करती हो, उनमें कई आदि भरती हो, अपने शरीर पर अथवा दूसरों के शरीर पर तेलमर्दन करती हो, विलासयुक्त गति से चलती हो, रूई से भरे हुए गद्दे पर शयन करती ही, स्नान आदि के द्वारा अपने शरीर को गारित करती हो, गृहस्थों के घरों में जाकर कथा कहती हो तथा युवा पुरुषों को बार-बार आने के लिए आमन्त्रित करती हो, वह साध्वी जिनशासन की मर्यादा के विपरीत आचरण करने वाली है।

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