Book Title: Agam 30 Prakirnak 07 Gacchachar Sutra
Author(s): Punyavijay, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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५४
गच्छायारपइपणयं
खते दंते गुत्ते मुत्ते वरगमगामल्लीणे । दसविहसामायारी-आवस्सग-संजमुज्जुत्ते ॥५३।।
खर-फरुस-कश्कसाए अणिवाए निरगिराए । निमच्छण-निद्धाणमाईहि म पत्तात १४॥
जे एन अकित्तिजणए नाजसजणए नऽकज्जकारी य । न पवयणुड्डाहकरे कंठग्गयपाणसे से वि ।।५५।।
गुरुणा कज्जमकज्जे खर-कक्कस-दुट्ट-
निरगिराए। भणिए तहत्ति सीसा भणंति. तं गोयमा! गच्छं ॥५६।।
दूरझिय पत्ताइसु ममत्तए, निप्पिहे सरीरे वि । "जायमजायाहारे बायाली सेसणाकुसले ॥५७।।
तं विन रूव-रसत्थं, न य वणथं. न चेव दप्पत्थं । संजमभरवहणत्थं, अक्खोवंगं व वहणत्यं ।।५८।।
वेयण १ वेयावच्चे २ इरियदाए ३ य संजमाए ४ । तह पाणवत्तियाए ५ छटुं पुण धम्मचिंताए ६ ॥५९ ।
जस्थ य जेट्ठ-कणिट्ठी जाणिज्जइ जेट्टविणय-बहुमाणा! दिवसेण वि जो जेट्ठो न हीलिज्ज इ. स गोयमा ! गच्छो ।।६।।
१. सीसे सं० पु० ॥ २. जत्तामताहारे ६० ॥ ३. 'तुष्णन जे० १० ।।

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