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মুমিকা
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२. जे० : आचार्य श्री जिनभद्रसूरि जैन ज्ञान भण्डार की ताड
पत्रीय प्रति । ३. सं० : संघवीपाडा जैन शान भण्डार की उपलब्ध ताडपत्रीय
प्रति । ४. पु० : मुनि श्री पुण्यविजयजी महाराज' की हस्तलिखित
प्रति । ५. ७० : श्री विजयविमलगणि कृत गच्छाचार प्रकीर्णकवृत्ति,
श्रीभद्राणविजयगणि द्वारा संपादित एवं वर्ष १९७९ में दयाविमल ग्रन्थमाला, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित
प्रति । इन पाण्डुलिपियों की विशेष जानकारी के लिए हम पाठकों से पइण्णयसुत्ताई ग्रन्थ की प्रस्तावना के पृष्ठ २३-२७ देख लेने की अनुशंसा करते हैं। गच्छाचार प्रकीर्णक के प्रकाशित संस्करण :
अर्द्धमागधी आगम साहित्य के अन्तर्गत अनेक प्राचीन एवं अध्यात्मप्रधान प्रकीर्णकों का निर्देश प्राप्त होता है, किन्तु व्यवहार में इन प्रकीणंकों के प्रचलन में नहीं रहने के कारण अधिकांश प्रकीर्णक जनसाधारण को अनुपलब्ध ही रहे हैं और कुछ प्रकीर्णकों को छोड़कर अन्य का प्रकाशन भी नहीं हुआ है। प्रकीर्णक ग्रन्थों की विषयवस्तु विशेष महत्त्वपूर्ण है अतः विगत कुछ वर्षों से प्राकृत भाषा में निबद्ध इन ग्रन्थों का संस्कृत, गुजराती, हिन्दी आदि विविध भाषाओं में अनुवाद सहित प्रकाशन हुआ है। गच्छाचार प्रकीर्णक के उपलब्ध प्रकाशित संस्करणों का विवरण इसप्रकार है
(१) गच्छाचार पइपणयं . आगमोदय समिति, बड़ोदा से "प्रकीर्ण कदशकम्" नामक प्रकाशित इस संस्करण में गच्छाचार सहित दस प्रकीर्णकों की प्राकृत भाषा में मूल गाथाएँ एवं उनकी संस्कृत छाया दी गई है । यह संस्करण वर्ष १९२८ में प्रकाशित हुआ है।
(२) श्री गच्छाचार पयम्ना श्री गच्छाचार पयन्ना नाम से मुनि श्री विजय राजेन्द्र सूरिजी द्वारा अनुवादित दो संस्करण प्रकाशित हुए हैं। प्रथम संस्करण श्री अमीरचन्दजी ताराजी दाणी, घानसा