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गच्छायारपइण्णय
(राज.) से वर्ष १९४५ में प्रकाशित हुआ है इसका वर्ष १९९१ में पुनः प्रकाशन हुआ है। धानसा से प्रकाशित इस संस्करण में प्राकृत गाथाओं का गुजराती भाषा में अनुवाद भी दिया गया है । ___मुनि श्री विजय राजेन्द्रसूरिजी द्वारा अनुवादित द्वितीय संस्करण श्री भूपेन्द्रसूरि जैन साहित्य समिति, आहोर (मारवाड़) से वर्ष १९४६ में प्रकाशित हुआ है। उक्त संस्करण में प्राकृत गाथाओं की संस्कृत छाया एवं गुजराती अनुशद दिया गया है ।
(३) गच्छाचार प्रकीर्णकम् -- गच्छाचार प्रकीर्णक का यह संस्करण प्राकृत गाथाओं एवं संस्कृत वृत्ति सहित दयाबिमल ग्रन्थमाला, अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ है।
(४) मच्छाचार प्रकीका - आमालनी न जा के शिष्! खजान चन्द जी म. सा. के प्रशिष्य मुनि श्री त्रिलोकचन्द जी द्वारा लिखित यह संस्करण रामजीदास किशोरचन्द जैन, मनासामण्डी से प्रकाशित हुआ है। ग्रन्थ में प्रकाशन का समय नहीं दिया गया है इसलिए यह बताना सम्भव नहीं है कि यह संस्करण कब प्रकाशित हुआ है। उक्त संस्कृत में प्राकृत भाषा में मूल गाषाएँ उसकी परिष्कृत संस्कृत छाया एवं साथ-साथ हिन्दी भाषा में भावार्थ भी दिया गया है।
(५) गच्छाचार प्रकीर्णकम् ---मुनि श्री विजयविमलगणि द्वारा लिखित यह संस्करण वर्ष १९७५ में श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्नन्धमाला, शांतिपुरी (सौराष्ट्र) से प्रकाशित हुआ है। यह संस्करण भी संस्कृत छाया के साथ प्रकाशित हुआ है ।
(६) श्रीमद गच्छाचार प्रकीर्णकम- आचार्य आनन्द विमल द्वारा लिखित यह संस्करण आगमोदय समति, बड़ौदा से वर्ष १९२३ में प्रकाशित हुआ है । उक्त संस्करण में प्राकृत गाथाओं के साथ वानर्षि कृत संस्कृत वृत्ति भी दी गई है । गच्छाचार के कर्ता
प्रकीर्णक ग्रन्थों के रचयिताओं के सन्दर्भ में मात्र देवेन्द्रस्तव को छोड़कर अन्य किसी प्रकीर्णक के रचयिता का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। यद्यपि चतुःशरण, आतुरप्रत्याख्यान और भक्तपरिज्ञा