Book Title: Agam 30 Prakirnak 07 Gacchachar Sutra
Author(s): Punyavijay, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 25
________________ २८ गच्छायारपरणय विशुद्ध गच्छ की प्ररूपणा करते हुए प्रन्थ में कहा गया है कि गुरु अत्यन्त कठोर, कर्कश, अप्रिय, निष्ठुर तथा क्रूर वचनों के द्वारा उपालम्भ देकर भी यदि शिष्य को गच्छ से बाहर निकाल दे तो भी जो शिष्य द्वेष नहीं करते, निन्दा नहीं करते, अपयश नहीं फैलाते, निन्दित कर्म नहीं करते, जिनदेव प्रणीत सिद्धांत की आलोचना नहीं करते अपितु गुरु के कठोर, क्रूर आदि वचनों के द्वारा जो भी कार्य-अकार्य कहा जाता है उसे "तहत्ति" ऐसा कहकर स्वीकार करते हों, उन शिष्यों का गच्छ ही वास्तव में गच्छ है (५४-५६)। सुविनीत शिष्य की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि वह न केवल वस्त्र-पामादि के प्रति ममता से रहित होता है अपितु वह शरीर के प्रति भी अनासक्त होता है । वह न रूप तथा रस के लिए और न सौन्दर्य तथा अहंकार के लिए आपतु चारित्र के भार को वहन करने के लिए ही गुन नि गाहार पहना करता है (५७-५९) पांचवें अंग आगम व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में वणित प्रश्नोत्तर शैली के अनुसार ही प्रस्तुत ग्रन्थ में भी गौतम को सम्बोधित करते हुए कहा गया ह कि ह गौतम ! वही गच्छ वास्तव में गच्छ है जहाँ छोटे-बड़े का ध्यान रखा जाता हो, एक दिन भी जो दीक्षा पयाय में बड़ा हो उसकी जहां अवज्ञा नहीं की जाती हो, भयंकर दुष्काल होने पर भी जिस गच्छ के साधु, साध्वी द्वारा लाया गया आहार ग्रहण नहीं करते हो, वृद्ध साधु भी साध्वियों से व्यथं वार्तालाप नहीं करते हों, स्त्रियों के अगोपांगा को सराग दष्टि से नहीं देखते हों ऐसा गच्छ ही वास्तव में गच्छ है (६०-६२)। ___ साधुओं के लिए साध्वियों के संसर्ग को सर्वथा त्याज्य माना गया है। ग्रन्थानुसार साध्वियों का संसर्ग अग्नि तथा विष के समान वजित है। जो साधु साध्वियों के साथ संसर्ग करता है वह शीघ्नही निन्दा प्राप्त करता है। अन्य में स्पष्ट कहा है कि स्त्री समूह से जो सदैव अनमत्त रहता है, वही ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है उससे भिन्न व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता (६३-७०)। गच्छाचार-प्रकीर्णक की एक यह विशेषता है कि इसमें कहीं तो सासु के उपलक्षण से और कहीं साध्वी के उपलक्षण से सुविहित आचार मार्ग का निरूपण किया गया है। हमें यह ध्यान रखना

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