Book Title: Agam 30 Prakirnak 07 Gacchachar Sutra
Author(s): Punyavijay, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 23
________________ गच्छायारपइग्ण हो, विहार में शिथिलता वर्तता हो तथा कुल, ग्राम, नगर और राज्य आदि का त्याग करके भी उनके प्रति ममत्व भाव रखता हो, संयम बल से रहित उस अज्ञानी को मुनि नहीं अपितु केवल देशधारी कहा गया है । (२०-२४)। ___ ग्रन्थ में शास्त्रोक्त मर्यादापूर्वक प्रेरणा देने वाले, जिन उपदिष्ट अनुष्ठान को यथार्थ रूप से बतलाने वाले तथा जिनमत को सम्यक प्रकार से प्रसारित करने वाले आचायों को तीर्थङ्कर के समान आदरणीय माना गया है तथा जिन वचन का उल्लंघन करने वाले आचार्यों को कायर पुरुष कहा गया है । (२५-२७) । __ ग्रन्थ के अनुसार तीन प्रकार के आचार्य जिन मार्ग को दूषित करते हैं (१) वे आचार्य जो स्वयं भ्रष्ट हों। (२) वे आचार्य जो स्वयं भले ही भ्रष्ट नहीं हों किन्तु दूसरों के भ्रष्ट आचरण की उपेक्षा करने वाले हों तथा (३) वे आचार्य जो जिन भगवान की आज्ञा के विपरीत आचरण करने वाले हों। ग्रन्थ में उन्मार्गगामी और सन्मार्गगामी आचार्य का विवेचन करते हुए कहा गया है कि सन्मार्ग का नाश करने वाले तथा उन्मार्ग पर प्रस्थित आचार्य का संसार परिभ्रमण अनन्त होता है। ऐसे आचायों की सेवा करने वाला शिष्य अपनी आत्मा को ससार समुद्र में गिराता है । (२९-३१) । किन्तु जो साधक आत्मा सन्मार्ग में आरूढ़ है उनके प्रति वात्सल्य भाव रखना चाहिए तथा औषध आदि से उनकी सेवा स्वयं तो करनी ही चाहिए और दूसरों से भी करवानी चाहिए : ३५) । प्रस्तुत ग्रन्थ में लोकहित करने वाले महापुरुषों की चर्चा करते हुए कहा गया है कि ऐसे कई महापुरुष भूतकाल में हुए हैं, वर्तमान म हैं और भविष्य में होंगे जो अपना सम्पूर्ण जीवन अपने एकमात्र लक्ष्य लोकहित हेतु व्यतीत करते हैं, ऐसे महापुरुषों के चरणयुगल म तानों लाकों के प्राणी नतमस्तक होते है (३६) ।

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