Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र और पंचेन्द्रिय। सूत्र-३६
द्वीन्द्रिय जीव क्या हैं ? द्वीन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं, पुलाकृमिक यावत् समुद्रलिक्षा । और भी अन्य इसी प्रकार के द्वीन्द्रिय जीव । ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त ।
हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन-औदारिक, तैजस और कार्मण । हे भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट से बारह योजन की अवगाहना है । उन जीवों के सेवार्तसंहनन और हुंडसंस्थान होता है । उनके चार कषाय, चार संज्ञाएं, तीन लेश्याएं और दो इन्द्रियाँ होती हैं । उनके तीन समुद्घात होते हैं-वेदना, कषाय और मारणान्तिक । ये जीव असंज्ञी हैं | नपुंसकवेद वाले हैं । इनके पाँच पर्याप्तियाँ और पाँच अपर्याप्तियाँ होती हैं । ये सम्यग्दृष्टि भी होते हैं और मिथ्यादृष्टि भी होते हैं । ये केवल अचक्षुदर्शन वाले होते हैं।
हे भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं । जो ज्ञानी हैं वे नियम से दो ज्ञानवाले हैं-मतिज्ञानी और श्रृतज्ञानी । जो अज्ञानी हैं वे नियम से दो अज्ञान वाले हैं-मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी । ये जीव, वचनयोग और काययोग वाले हैं । ये जीव आकार-उपयोगवाले भी हैं और अनाकार-उपयोग वाले भी हैं। इन जीवों का आहार नियम से छह दिशाओं के पुद्गलों का है । इनका उपपात नैरयिक, देव और असंख्यात वर्ष की आयुवालों को छोड़कर शेष तिर्यंच और मनुष्यों से होता है । इनकी स्थिति जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट से बारह वर्ष की है । ये मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी । हे भगवन् ! ये मरकर कहाँ जाते हैं ? गौतम ! नैरयिक, देव और असंख्यात वर्ष की आयुवाले तिर्यंचों मनुष्यों को छोड़कर शेष तिर्यंचों मनुष्यों में जाते हैं । अतएव ये जीव दो गति में जाते हैं, दो गति से आते हैं, प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात हैं सूत्र-३७
त्रीन्द्रिय जीव कौन हैं ? त्रीन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं, औपयिक, रोहिणीत्क, यावत् हस्तिशौण्ड और अन्य भी इसी प्रकार के त्रीन्द्रिय जीव । ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । इसी तरह वह सब कथन द्वीन्द्रिय समान करना । विशेषता यह है कि त्रीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट शरीरावगाहना तीन कोस की है, उनके तीन इन्द्रियाँ हैं, जघन्य अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट उनपचास रात-दिन की स्थिति है । यावत् वे दो गतिवाले, दो आगतिवाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात कहे गये हैं। सूत्र-३८
चतुरिन्द्रिय जीव कौन हैं? चतुरिन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं-यथा अंधिक, पुत्रिक यावत् गोमयकीट और इसी प्रकार के अन्य जीव । ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं पर्याप्त और अपर्याप्त । हे भगवन ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन । इस प्रकार पूर्ववत कथन करना । विशेषता यह है कि उनकी उत्कष्ट शरीर-अवर कोस की है, उनके चार इन्द्रियाँ हैं, वे चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी हैं, उनकी स्थिति उत्कृष्ट छह मास की है । शेष कथन त्रीन्द्रिय जीवों की तरह जानना यावत वे असंख्यात कहे गये हैं। सूत्र - ३९
पंचेन्द्रिय का स्वरूप क्या है ? पंचेन्द्रिय चार प्रकार के हैं, नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव । सूत्र-४०
नैरयिक जीवों का स्वरूप कैसा है ? नैरयिक जीव सात प्रकार के हैं, यथा रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक यावत् अधःसप्तमपृथ्वी-नैरयिक । ये नारक जीव दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त | भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन-वैक्रिय, तैजस और कार्मण | भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! दो प्रकार की है, यथा भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । इसमें से जो भवधारणीय अवगाहना है वह जघन्य से
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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