Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 15
________________ फ्र प्राग्वक्तव्य जैन आगमों की स्वर्ण - मंजूषा का अमूल्य रत्न है श्री भगवती सूत्र । यह आकार की दृष्टि से सबसे बड़ा आगम है। साथ ही विषयों की विविधता और रोचकता में भी यह सबसे विशाल ज्ञान का सागर है | ज्ञान-विज्ञान की विविध शाखाओं का जितना सुन्दर तथा समुचित वर्णन इस आगम में है, वह सबसे महत्त्वपूर्ण है। भगवती सूत्र के सम्बन्ध में प्रथम भाग की प्रस्तावना में मैंने विस्तारपूर्वक लिखा है। अतः यहाँ उसकी पुनरुक्ति करने की आवश्यकता नहीं है। प्रस्तुत भाग में हमने पंचम शतक से आठवें शतक के प्रथम उद्देशक तक लिए हैं। पाँचवें शतक के प्रारम्भ में ही सूर्य के उदय, अस्त, भ्रमण आदि की चर्चा है। आधुनिक विज्ञान की मान्यता के अनुसार यह विषय विवादास्पद हो सकता है, किन्तु भारतीय ज्योतिषशास्त्र और धर्मशास्त्र सभी सूर्य को अन्तरिक्ष में परिभ्रमण करते हुए मानते हैं और उनके गणित के अनुसार भी सूर्य का उदय-अस्त ग्रहण आदि सब घटनाएँ बराबर यथासमय घटित हो रही हैं। इस कारण यह नहीं कहा जा सकता कि वे मान्यताएँ गलत हैं। फिर भी इस विषय में विवादास्पद चर्चा छोड़कर हमने आगमिक मान्यता प्रस्तुत की है। इस शतक के अन्य अनेक विषय भी तत्त्वज्ञान, जीवविज्ञान, शब्द की शक्ति आदि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। सातवें उद्देशक में परमाणु तथा स्कन्ध की चर्चा वर्तमान के परमाणुविज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त मौलिक तथा ज्ञानवर्धक है। २५०० वर्ष पूर्व भगवान महावीर ने अपने प्रत्यक्ष दर्शन के आधार पर जिस परमाणु सम्बन्धी तत्त्वदर्शन का कथन किया था, वह आज के परिप्रेक्ष्य में अनेक ज्ञानवर्धक रोचक तथ्य प्रस्तुत करता है जो आधुनिक विज्ञान के समृद्ध कर सकते हैं। छठा शतक तत्त्वज्ञान और कर्मविज्ञान की दृष्टि से विशेष पठनीय है। महावेदना, महानिर्जरा का प्रकरण आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष मार्गदर्शक है । वेदना और कष्ट के समय यदि समभाव, तितिक्षा धारण की जाती है तो तीव्र वेदना की पीड़ानुभूति भी उतनी कष्टदायी नहीं होती और कर्मनिर्जरा की दृष्टि से वह विशेष लाभप्रद सिद्ध होती है। समता का यह दर्शन जीवन में आने वाले कष्टों की पीड़ानुभूति कम करके सहन करने की शक्ति जगाता है। स्वाध्याय के समय यह उद्देशक और तितिक्षा विशेष रूप से मनन करने योग्य है। छठे शतक के पंचम उद्देशक में तमस्काय का वर्णन आज के विज्ञान द्वारा खोजे गये ब्लैक होल के साथ तुलना करने पर अनेक बातों की आश्चर्यजनक समानता प्रतीत होती है । तमस्काय का यह वर्णन प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में एकमात्र जैन आगमों में ही उपलब्ध होता है। ब्लैक होल के वर्णन के साथ इसकी तुलना, इस वर्णन की यथार्थता पर प्रकाश डालती है। सातवें शतक में भी अनेक व्यावहारिक विषयों का बड़ा विशद वर्णन है । श्रमणों को आहारदान का लाभ, प्रत्याख्यान आदि में ज्ञान व अन्तर विवेक की प्रधानता, साता वेदनीय-असाता वेदनीय कर्मबंध **** Jain Education International (7) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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