Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 13
________________ 卐555555555555;)) )) )))))) ) ) | प्रकाशकीय सन् १९९२ में हमने सर्वप्रथम श्री उत्तराध्ययनसूत्र का सचित्र हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रकाशन किया था। तब हमारा यह प्रथम प्रयास, एक नया प्रयोग था। क्योंकि इसके पहले इस आगम का अंग्रेजी अनुवाद तो प्रकाशित हो चुका था, परन्तु उसके विषयों को स्पष्ट करने वाले भावपूर्ण चित्रों सहित ३२ आगमों में से किसी भी आगम का प्रकाशन नहीं हुआ था। हमारा यह प्रयोग शत-प्रतिशत सफल रहा। जिनवाणी के श्रद्धालु पाठकों ने उसका भरपूर स्वागत किया और इसकी माँग आने लगी। प्रोत्साहित होकर उ. भा. प्रवर्तक स्वर्गीय गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. सा. ने अपने विद्वान् शिष्य श्री अमर माने जी म. को आज्ञा प्रदान की कि आगमों का अंग्रेजी अनुवाद तथा चित्रों सहित प्रकाशन कार्य आप प्रारम्भ करो। अंग्रेजी भाषी जनता में आज भी ज्ञान-पिपासा अधिक है। विदेशी विद्वान् जैनधर्म की मान्यताओं को बड़ी गम्भीरतापूर्वक पढ़ते हैं और उनसे अनेक नये-नये सत्य-तथ्य उद्घाटित करने का प्रयास करते हैं। - अपने पूज्य गुरुदेव का मंगल आशीर्वाद तथा प्रोत्साहन प्राप्त कर हमारे श्रद्धेय श्री अमर मुनि जी स. ने गुरुदेव की भावनाओं को मूर्त रूप देने का दृढ़ संकल्प किया। इस कार्य में अनेक विकल्प व बाधाएँ भी आईं, परन्तु दृढ़ संकल्प सभी विकल्पों की दीवारें तोड़ता हुआ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता ही चला गया। आज निरन्तर १४ वर्षों के प्रयास में हमने १९ आगमों का सचित्र अंग्रेजी भाषान्तर के साथ प्रकाशन किया है और सर्वत्र इस अभिनव कार्य की प्रशंसा हो रही है। शास्त्र नाम से डरने वाले भी अब शास्त्रों को पढ़ने लगे हैं। अपने घरों की लाइब्रेरी में इसका संग्रह करने लगे हैं। आज ‘आगम' के प्रति जिज्ञासा और जन श्रद्धा बढ़ रही है। आगम प्रकाशन का यह ऐतिहासिक कार्य अब अपने लक्ष्य के निकट पहुँच रहा है। हमें दृढ़ विश्वास है कि हम इसी गति से प्रगति करते हुए शीघ्र ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगे। गत वर्ष श्री भगवती सूत्र का प्रथम भाग (शतक १ से ४) तक प्रकाशित हुआ था। इस द्वितीय भाग में शतक ५, ६, ७ तथा आठवें शतक के प्रथम उद्देशक तक लिए गये हैं। आगे की सामग्री तीसरे से छठे भाग तक में सम्पन्न होने की आशा है। इस आगम.के अनुवाद आदि कार्यों में गुरुदेव के अन्तेवासी शिष्य श्री वरुण मुनि जी पूरी निष्ठा के साथ जुड़े हैं। साथ ही आगम साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' तथा अंग्रेजी अनुवाद करने वाले श्री सुरेन्द्र कुमार जी बोथरा भी पूर्ण मनोयोगपूर्वक जुटे हैं। आगममाला का यह १९वाँ पुष्प पाठकों के हाथों में प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है। __इसके प्रकाशन में अनेक उदारमना गुरुभक्त सुश्रावकों ने सदा की भाँति अपने श्रद्धा पुष्प समर्पित कर जिनवाणी के प्रति अपना आध्यात्मिक अनुराग तथा गुरु-भक्ति का प्रदर्शन किया है। हम उन सबके प्रति हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करते हैं। महेन्द्रकुमार जैन अध्यक्ष पद्म प्रकाशन (5) 9555555555555555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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